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देश की कीमत पर राजनीति स्वीकार नहीं : डॉ. राघवेंद्र शर्मा

डॉक्टर राघवेंद्र शर्मा 
भारतीय लोकतंत्र में ऐसे लोगों को कलंक ही कहा जाएगा, जिनके लिए राजनीति ही सब कुछ है। देश की एकता अखंडता, उसकी सार्वभौमिकता, यह सब कुछ कतिपय स्वार्थी नेताओं के लिए जैसे दोयम दर्जे की बात हो जाती है। ऐसे ही नेताओं में एक नाम लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का भी है। यूं तो उन्हें विवादित और तथ्यहीन बयानों के लिए पूर्व से ही ख्याति मिली हुई है। लेकिन इस बार उन्होंने सेना के भीतर जात-पांत का खेल खेल कर निकृष्टतम कार्य ही कर डाला। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए यहां तक कह डाला कि भारतीय सेना में भी बहुल्यता भले ही दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लोगों की हो। लेकिन वहां भी आधिपत्य 10% लोगों का ही बना हुआ है। उनके इस बयान की जितनी भी निंदा की जाए कम है। भारत के एक साधारण नागरिक से भी यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह देश की सेना के बारे में इतने निम्न स्तरीय विचारों का प्रदर्शन करेगा। और फिर राहुल गांधी को तो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद मिला हुआ है। इसलिए उन्हें अपने हर बयान को सोच समझ कर देना चाहिए। कम से कम उपरोक्त पद पर बैठे व्यक्ति से इतनी अपेक्षा तो की ही जा सकती है। किंतु जब उनके द्वारा समाज से लेकर सेना तक जातिगत वैमनष्यता पैदा करने वाले बयान दिए जाते हैं, तब आश्चर्य बिल्कुल नहीं होता।  क्योंकि उन्हें इसी प्रकार के बयान देने वाले अपरिपक्व व्यक्ति के रूप में पहचाना जाता है। भारतीय सेना को लेकर जहां एक ओर देश का प्रत्येक नागरिक बेहद सम्मानजनक भाव अपने हृदय में रखता है। वहीं राहुल गांधी सदैव ही ऐसे अवसर की तलाश में लगे रहते हैं, जब वह सेना की आलोचना कर सकें और उसका मनोबल गिरा पाएं। यह इसलिए लिखना उचित प्रतीत होता है, क्योंकि राहुल गांधी पहले भी भारतीय सेना के सामर्थ्य पर सवाल उठा चुके हैं। जब गलवान घाटी में चीनी सेना को सबक सिखाने पर सारे भारतीय अपनी सेना का महिमा मंडन कर रहे थे, तब राहुल गांधी ने कहा था कि चीन की सेना ने भारत की 2000 किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया। इस पर उनके खिलाफ अदालत में मुकदमा भी चला और राहुल गांधी को अच्छी खासी फटकार भी लगाई गई। विद्वान न्यायाधीश को उनके बेहद गैर जिम्मेदाराना बयान पर टिप्पणी करना पड़ गई कि आपको कैसे पता चला कि चीन की सेना ने हमारी 2000 किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है? इस सूचना प्राप्ति का क्या स्रोत है आपके पास? राहुल गांधी से यह भी कहा गया कि आप लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं तो फिर सदन में बोला करें ना! सोशल मीडिया पर इस तरह के बयान देने की क्या आवश्यकता है? राहुल गांधी को शर्म आनी चाहिए कि अदालत को यह तक कहना पड़ गया - आपने जो कुछ कहा वह एक सच्चा हिंदुस्तानी कभी नहीं कह सकता। इस फटकार के बाद उम्मीद बंधी थी कि अब राहुल गांधी सोच समझ कर बोलेंगे। लेकिन अफसोस ऐसा कुछ नहीं हुआ। वह लगातार झूठ फैलाते रहे और आम जनता को भ्रमित करने के असफल प्रयासों में लग रहे। इसी प्रकार का एक झूठ उनके द्वारा यह कहकर फैलाया गया कि सारे चोरों का सरनेम एक ही क्यों होता है? यह मामला भी अदालत की जेरे नजर हुआ और राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई गई। जिसके चलते उनकी लोकसभा सदस्यता भी जाती रही। लेकिन इस सब के बावजूद राहुल गांधी का रवैया जैसे का तैसा ही बना रहा। वे कभी देश में तो कभी विदेश में भारत के खिलाफ बोलते रहे। यहां तक कि दूसरे देशों को भारत के खिलाफ भड़कते, उकसाते भी रहे हैं। उदाहरण के लिए - एक बार उन्होंने विदेशी धरती पर यह तक कह डाला कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो चुका है। उसकी रक्षा के लिए आप लोगों को दखल देना चाहिए। उनके इस बयान की भारतीय मीडिया में निंदा तो हुई ही, विदेशी राजनेता और पत्रकार भी उनके राष्ट्र विरोधी बयान को लेकर अचंभित रह गए। लेकिन राहुल गांधी का रवैया जस का तस ही बना रहा। बोलने से पहले और बोलने के बाद कभी न सोचना उनकी स्थाई कार्यशैली की पहचान है। जैसे एक बार उन्होंने बड़ी आसानी से कह दिया कि गांधी जी की हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ था। जब मामला अदालत में पहुंचा और राहुल के सामने यह स्पष्ट हो गया कि वे अपने ही झूठे बयान में बुरी तरह फंस चुके हैं और सजा से दंडित भी हो सकते हैं, तब विद्वान अभिभाषकों की सलाह पर तत्काल हाथ जोड़कर माफी मांग ली। जो व्यक्ति स्वयं को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करता फिरता हो और इस तरह के आधारहीन बयान देता फिरे, तो फिर अदालती टिप्पणियों और फटकारों के बाद उससे भी यह उम्मीद बन जाती है कि कम से कम अब तो वह भ्रामक बयान बाजी से बाज आ जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर पर टिप्पणी करते हुए बोले कि उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी। लिहाजा अदालत में पेशी कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं को 21वीं सदी के कौरव कहे जाने पर हरिद्वार की अदालत में पेशी का क्रम बना हुआ है। विदेशी दौरे पर यह कहना कि भारतीय गुरुद्वारों में सिख समाज को पगड़ी पहनने की भी अनुमति नहीं है, ये सफेद झूठ नहीं तो और क्या है?  स्वयं सिख समाज द्वारा उनके इस बे सिर पैर के बयान को खारिज किया जा चुका है। इसके अलावा प्रधानमंत्री जैसे गरिमामय पद पर आसीन विभूति के लिए अपमानजनक शब्दों का उद्बोधन किया जाना उनकी आदत में शुमार है। लोकतंत्र खतरे में है और संविधान की हत्या की जा रही है, उपरोक्त प्रकार के बयान अब जनता के सिर के ऊपर से गुजरने लगे हैं। तब एक पुरातन कांग्रेसी नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन को कहना पड़ गया कि वे बदतमीजों के बादशाह हैं और उनके मूलभूत संस्कार ही गलत हैं। लिखने का आशय यह कि जिस तरह की बयान बाजी और हरकतें राहुल गांधी द्वारा की जाती हैं, उनसे कांग्रेस का भी भला नहीं होने वाला। अतः स्वयं कांग्रेस जनों को "और कुछ ना सही तो कम से कम पार्टी हित में ही सही" इस बाबत संज्ञान लेने की आवश्यकता है।
लेखक मध्य प्रदेश बाल कल्याण आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं  #rashtriy swayamsevak Sangh #BJP #Congress #Rahul Gandhi #Mahatma Gandhi #vote chori #EVM #prime minister #Raghvendra #Shabdghosh #Mohanlal Modi #Aacharya Pramod Krishnan #Bihar election #Haryana #Indian army #supreme court #China #SC ST #savarna #

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