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वंदे मातरम का विरोध अराष्ट्रीय, आधारहीन : डॉक्टर राघवेंद्र शर्मा

डॉक्टर राघवेंद्र शर्मा।
जैसे ही केंद्र सरकार ने घोषित किया कि भारतीय राष्ट्र गीत वंदे मातरम को 150 वर्ष पूर्ण होने पर पूरे 1 साल तक देश भर में विशेष समारोह आयोजित किये जाएंगे। वंदे मातरम पर एक डाक टिकट और 150 रुपए का सिक्का जारी करके इसकी विधि पर शुरुआत भी कर दी गई। लेकिन जैसे ही राष्ट्रगीत को लेकर 1 वर्षीय समारोह की घोषणा हुई, वैसे ही विभिन्न टेलीविजन चैनलों पर इस गीत को लेकर वाद विवाद शुरू हो गए। एक वर्ग के नेताओं द्वारा यह दावा किया जाने लगा कि वंदे मातरम हमारे मजहब के हिसाब से गाने लायक है ही नहीं। इसे तो कोई काफिर ही गा सकता है। मीडिया को भी पूर्व से ही ज्ञात है कि जब वंदे मातरम की बात बहस का मुद्दा बनेगी, तब कट्टरपंथी नेताओं द्वारा इसकी जमकर मुखाफलत की जाएगी। यही वजह है कि इस गीत के विपक्ष में बोलने वालों के रूप में उन्हीं व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया, जिनके बारे में पहले से ही यह धारणा स्थापित है कि इन्हें तो वंदे मातरम का कटुतम विरोध करना ही है और उन्होंने किया भी। तब सवाल यह उठता है कि एक वर्ग के कट्टर नेताओं द्वारा इस गीत का विरोध क्यों किया जाता है इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश को भ्रमित करने वाले अधिकतम अवसरवादी नेता और राजनीतिक दल इस सोच को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि अनेक लोगों द्वारा डंके की चोट पर यह ऐलान किया जाता है कि हम वंदे मातरम गाना तो दूर, वंदे मातरम कहने तक को तैयार नहीं हैं। तो फिर सवाल यह उठता है कि वंदे मातरम में ऐसा है क्या, जिसके चलते यह राष्ट्र गीत होने के बाद भी वर्ग विशेष के कुछ कट्टरपंथियों के लिए अस्पृश्य ही बना हुआ है। तो पहले हम गीत के उस भाग पर दृष्टिपात करते हैं जो अभी प्रचलन में बना हुआ है।
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्
सस्य श्यामलां मातरंम्.
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
सुखदां वरदां मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
 रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम।
अब गौर करते हैं कि इन पंक्तियों में आखिर ऐसा क्या आपत्तिजनक है जिसका लंबे अरसे से विरोध किया जा रहा है। यह जानने के लिए आवश्यक हो जाता है कि हम गीत के भावार्थ को जानें, जो इस प्रकार है -
​वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
(मैं तुम्हें नमन करता हूँ, हे माँ! मैं तुम्हें नमन करता हूँ!)
​सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
सस्य श्यामलां मातरंम्.
(हे माँ, तुम जल से परिपूर्ण हो, फलों से समृद्ध हो, दक्षिण की हवाओं से शीतल हो, और फ़सलों से हरी-भरी हो।)
​वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
(मैं तुम्हें नमन करता हूँ, हे माँ! मैं तुम्हें नमन करता हूँ!)
​शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
(हे माँ, तुम्हारी रातें चमकदार चाँदनी से रोमांचक होती हैं। तुम खिले हुए फूलों और पेड़ों की डालियों से सुशोभित हो।)
​सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
सुखदां वरदां मातरम् ॥
(तुम प्यारी मुस्कान वाली हो, मधुर बोलने वाली हो। तुम सुख देने वाली और वरदान देने वाली हो, हे माँ!)
​वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
(मैं तुम्हें नमन करता हूँ, हे माँ! मैं तुम्हें नमन करता हूँ!)
​कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
(करोड़ों कंठों की ध्वनि से (जो तुम्हारे सम्मान में निकलती है) गूँजने वाली। चौदह करोड़ हाथों में तेज तलवारें धारण करने वाली।)
​के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥
(कौन कहता है कि तुम कमज़ोर हो, हे माँ? मैं तुम्हें नमन करता हूँ, जो अपार शक्ति धारण करने वाली हो, जो मुक्ति दिलाने वाली हो, जो शत्रुओं के समूह का नाश करने वाली हो, हे माँ!)
​वंदे मातरम्, वंदे मातरम।
मैं तुम्हें नमन करता हूँ, हे माँ! मैं तुम्हें नमन करता हूँ।
​यहां भारत भूमि को मां के रूप में वर्णित किया गया है और वंदे मातरम कह के यह आस्था व्यक्त की गई है कि है मां मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं। यानि भारत मां को प्रणाम करता हूं। जिस मजहब के कट्टरवादी नेताओं द्वारा इस पवित्र गीत को लेकर जहरीले बोल बोल जाते हैं, उन्हीं की भाषा में एक शब्द है "मादरेवतन" यह वही शब्द है जिसे हिंदी में "धरती मां" कहा गया है। मादरे वतन यानी मातृभूमि और वंदे मातरम का मतलब मां तुझे प्रणाम। तो फिर भ्रम कहां रह गया ?  बात तो मां को प्रणाम करने की हो रही है। भले ही वह मां हिंदू की हो या फिर मुसलमान की! इससे क्या फर्क पड़ता है? फिर कुतर्क दिया जाता है की यह गीत हिंदुओं का है। एक हिंदू कवि द्वारा हिंदुओं के लिए बनाया गया है। तो फिर हमें इस गीत की पृष्ठभूमि में जाना चाहिए। जिस समय भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का शासन था, तब बंकिम चंद्र चटर्जी सरकारी सेवा में कार्यरत थे। इसी दौरान ब्रिटिश शासन ने एक ऐसा आदेश जारी किया,जिसके तहत भारत में 'गॉड सेव द क्वीन' नामक विदेशी गीत गाना अनिवार्य कर दिया गया। बंकिम चंद्र चटर्जी को यह असहनीय लगा कि भारत की धरती पर एक विदेशी शासक की प्रशंसा में गीत गाया जाए। विरोध और राष्ट्रीय स्वाभिमान की इसी भावना ने बंकिम चंद्र को 'वंदे मातरम' गीत की रचना के लिए प्रेरित किया। ब्रिटिश हुकूमत के इस कदम से आहत होकर, उन्होंने यह निश्चय किया कि वे एक ऐसा गीत लिखेंगे जो सिर्फ भारत भूमि का गौरव गान करेगा। इस संकल्प को पूरा करते हुए, उन्होंने साल 1875 में 'वंदे मातरम' की रचना की। देशप्रेम से ओत-प्रोत यह कविता विस्तृत रूप से उनके विख्यात उपन्यास ‘आनंद मठ’ में प्रकाशित हुई। उनकी यह अमर रचना उस समय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानियों के लिए असीम शक्ति और प्रोत्साहन का स्रोत बन गई। बंकिम चंद्र चटर्जी ने इस कविता की रचना साल 1875 में की थी। इस गीत के शुरुआती दो पैरा संस्कृत भाषा में थे, जबकि बाकी की रचना बंगाली में की गई थी। इस गीत को सुर और ताल देने का श्रेय महान कवि रवींद्र नाथ टैगोर को जाता है, जिन्होंने इसे सबसे पहले 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया था। बाद में, अरबिंदो घोष ने इसका अंग्रेजी और आरिफ मोहम्मद खान ने उर्दू अनुवाद किया। आजादी के बाद, 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के साथ ही 'वंदे मातरम' को भी भारत के राष्ट्रीय गीत को सम्मानजनक दर्जा दिया गया। भारत सरकार की आधिकारिक जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय गीत का आदर और स्थान राष्ट्रगान के बिल्कुल समान ही माना जाता है। 
लेकिन विवाद की जड़ यह कहकर रोपी जाती है कि यह हिंदुओं का गाना है। तो फिर हम आनंद मठ के उस कथानक में जाएं जिसमें पहली बार यह गीत पूर्ण रूप से प्रकाशित हुआ था। आनंदमठ कहता है कि एकीकृत बंगाल में एक क्रूर नवाब से जनता परेशान थी। तब वहां के हिंदू साधु संतों और मुस्लिम पीर फकीरों ने विरोध का साझा बीड़ा उठाया और उस क्रूर नवाब का अंत कर डाला। जिन्हें इस कथानक का ज्ञान नहीं वे यह कुतर्क भी देते हैं कि गीत के कुछ अंतरों में मां दुर्गा और लक्ष्मी की स्तुति शामिल है। यही कारण है कि कांग्रेस के अधिवेशन में भी इस गीत को प्रतिबंध किया गया। लेकिन यह आधा सच है जैसा की ऊपर लिखा जा चुका है श्री रविंद्र नाथ टैगोर इस गीत को कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में गा चुके हैं और यह भी अध्ययन का विषय है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी वंदे मातरम को कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में गया है। हां यह और बात है कि जब पार्टी की कमान पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं के हाथ में आई, तब गीत के उन अंतरों को प्रतिबंधित कर दिया गया, जिनमें मां दुर्गा और मां लक्ष्मी की स्तुति प्रतिपादित की जा रही थी। जबकि पूरी जिम्मेदारी के साथ यह दावा किया जा रहा है कि वह स्तुति दुर्गा मां या लक्ष्मी मां की न होकर धरती मां की दुर्गा और लक्ष्मी से तुलना मात्र थी। यानि कवि ने अपनी मातृभूमि को साक्षात दुर्गा और लक्ष्मी के रूप में महिमा मंडित किया था। तो यहां सवाल उठता है कि जब एक हिंदू कभी अपनी मातृभूमि की तुलना किसी महान विभूति से करेगा तो वहां दुर्गा और लक्ष्मी के नाम नहीं आएंगे तो क्या मरियम और फातिमा का उल्लेख होगा? 
कांग्रेस की तुष्टिकरण युक्त सोच ने गीत के उन अंतरों पर रोक लगा दी, जिन्हें मुस्लिम समाज के लिहाज से अपठनीय बताया जा रहा था। मैं फिर दावा करता हूं, जिन पंक्तियों को गीत से काटा गया उनमें आपत्तिजनक कुछ था ही नहीं। हां, कांग्रेस ने उन्हें विलोपित कर अपने तईं यह स्थापित जरूर कर दिखाया कि गीत में कुछ तो गलत था! वरना काट छांट क्यों करना पड़ती? कुल मिलाकर यह विवाद भारत में फूट के बीज बोने वाले मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा पैदा किया गया, और तुष्टीकरण के माध्यम से कांग्रेस को सदैव ही वोट बैंक बनाए रखने वाली कांग्रेस ने उक्त दुर्विचार को खाद पानी मुहैया कराई। फल स्वरुप भारत के बाहर अपनी जड़े तलासने वाले वर्ग विशेष से कट्टरपंथी नेता तब भी वंदे मातरम का विरोध कर रहे हैं, जबकि उसके गायन में वह पंक्तियां रही ही नहीं, जिन में दुर्गा और लक्ष्मी का उल्लेख समाहित था। मतलब साफ है, वंदे मातरम में विरोध करने लायक ना पहले कुछ था और ना आज कुछ है। जिन्होंने भारतीयता और राष्ट्रीयता का यहां के सनातन संस्कारों का सदैव ही विरोध करने का झंडा उठाए रखा है, उन्हें तो हर सही चीज का विरोध करना ही है। शायद तभी इस देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को यह निर्णय लेना पड़ा कि जब तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले कट्टरपंथियों द्वारा अकारण राष्ट्र गीत पर सवाल उठाए जा रहे हैं। उसके चार अंतरे विलोपित कर दिए जाने के बावजूद भी उसे स्वीकार नहीं किया जा रहा है। तो फिर संशोधित गीत क्यों गाएं ? राष्ट्र विरोधी सोच रखने वाले लोगों की कुंठित सोच का जवाब क्यों ना पूरे 6 अंतरे के साथ पूरा का पूरा वंदे मातरम गाकर दिया जाए! यही हुआ। जब वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर दिल्ली में मुख्य समारोह आयोजित हुआ तो स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और उपस्थित गणमान्यों ने वंदे मातरम के संपूर्ण गीत का उद्घोष किया। इस संकल्प के साथ कि अब पूरे 1 साल तक हर राज्य, जिले, तहसील, गांव और मजरे टोले तक इस गीत को पहुंचना है। साथ में देश की जनता को यह सच्चाई भी बताना है कि वंदे मातरम के गीत का भावार्थ और कुछ नहीं, बस धरती मां की स्तुति है। धरती मां। हमारी भारत मां तथा सच्चे भारतीय मुसलमान का मादरे वतन।
गर्व के साथ पढ़ें, ऐसा है हमारा राष्ट्र गीत-
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
सस्य श्यामलां मातरंम्.
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
सुखदां वरदां मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
 रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम।
 तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रछंदि तुमि मर्म
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
जंतोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
 त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी कमला कमलदल विहारिणी
 वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
 नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
 सुजलां सुफलां मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

लेखक मध्य प्रदेश बाल कल्याण आयोग के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय के पूर्व मंत्री हैं। आप सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर अनेक सार गर्भित ग्रंथों का सृजन करते रहे हैं।
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