केंद्र सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा सरदार वल्लभभाई पटेल का यशो गान किया जाना कांग्रेस को रास नहीं आया। अतः पटेल जयंती के दिन ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मांग कर डाली कि आरएसएस पर फिर से प्रतिबंध लगा देना चाहिए। जब इस बयान को लेकर पत्रकारों ने संघ के सर कार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले से सवाल किया तो उन्होंने कह दिया - लगाकर देख लें, हो सके तो इतिहास से भी कुछ सीख लें। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि कांग्रेस जन यह भी जान लें कि जब-जब संघ पर प्रतिबंध लगाए गए, तब तब समाज ने कांग्रेस और उसकी सरकारों के खिलाफ क्या प्रतिक्रिया दी? यह जवाब एक प्रकार से चुनौती प्रतीत होता है कांग्रेस के लिए। क्योंकि कर्नाटक में जहां कांग्रेस की सरकार है, वहां संघ के पथ संचलन समेत उसकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाए जाने का षड्यंत्र हाल ही में रचा गया था। किंतु अदालती हस्तक्षेप के चलते उसकी मंशाओं पर पानी फिर गया। कांग्रेस के जले पर नमक तब पड़ा तब भाजपा, उसकी सरकारों ने सरदार पटेल की जयंती पर विहंगम कार्यक्रम कर डाले। यहां तक कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की मंशा अनुरूप गुजरात के केवड़िया धाम पर अच्छा खासा महोत्सव ही आयोजित कर दिया गया। यह सब देख कांग्रेसी नेताओं की त्योरियां चढ़ना स्वाभाविक थीं,सो चढ़ीं भी। क्योंकि जिस पार्टी में केवल एक परिवार के यशोगान की परंपरा हो, आखिर उसके नेता दूसरी किसी महान विभूति को सम्मानित होते देखते भी कैसे? वह भी उन सरदार वल्लभभाई पटेल को, जिन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए निर्वाचित हो जाने के बाद भी कांग्रेस ने उक्त पद पर उन्हें बैठने नहीं दिया? बस फिर क्या था गुस्सा भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निकल गया। यह कहकर कि संघ पर फिर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। उस पर अब जब श्री होसबोले जी का सपाट जवाब सामने आ गया है, तब कांग्रेस एक प्रकार से तिलमिला ही रही है। क्योंकि उसे लग रहा था कि प्रतिबंध की बात सुनकर संघ और उसके स्वयंसेवक मानसिक दबाव में आ जाएंगे। लेकिन हुआ उल्टा, श्री होसबोले जी ने बेहद संयमित भाषा में कांग्रेस को एक प्रकार से चुनौती ही दे डाली। वैसेभी तिलमिलाने के सिवाय कांग्रेस के हाथ में कुछ रह भी नहीं गया है। क्योंकि राष्ट्रवादी विचार के विपरीत आचरण के चलते ही देश के नागरिकों ने कांग्रेस को किसी लायक छोड़ा नहीं है। जहां तक प्रतिबंध की बात है तो सत्ता के मद में चूर कांग्रेस ने जब-जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ इस प्रतिबंधात्मक शस्त्र का इस्तेमाल किया, तब तब उसे मुंह की खानी पड़ी। क्योंकि समाज और न्यायालय, दोनों ने संघ की राष्ट्र प्रेम युक्त कार्य प्रणाली को सदैव ही सराहा है। फल स्वरुप वह अनेक प्रतिबंधों के बावजूद निरंतर आगे ही बढ़ता चला गया। पहले महात्मा गांधी की हत्या के नाम पर संघ का बुरा करना चाहा, लेकिन 2 साल बाद ही नेहरू सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ गया। उसके बाद कांग्रेस द्वारा आपातकाल में फिर वही प्रयोग दोहराया गया । लेकिन जन सहयोग से संघ के स्वयंसेवक भारत माता के भाल से आपातकाल का कलंक पोंछने में सफल रहे। इससे संघ और ताकतवर होकर उभरा । साल 1992 में जब बाबरी ढांचा ध्वस्त हुआ तो उसकी कीमत फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाकर वसूलनी चाही। यहां तक कि भाजपा की चार राज्यों की लोकतांत्रिक सरकारें भी ढहा दी गईं। एक बार फिर देश की जनता को कांग्रेस की यह करतूत रास नहीं आई। नतीजतन संघ और भाजपा एक नई ऊर्जा और द्रुत गति के साथ देश सेवा में संलग्न होते चले गए। आज दोपहर के सूर्य के समान स्थापित सत्य यही है, कि वैश्विक पटल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुओं का सबसे बड़ा संगठन बन चुका है। जबकि भारतीय जनता पार्टी को भी विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल का तमगा प्राप्त है। लिखने का आशय है कि संघ के विरोधियों को अकारण ही गाल बजाने की बजाय पहले संघ के बारे में जानने की आवश्यकता है। वरना तो कांग्रेस के ही अनेक नेता देर से ही सही, यह मानने के लिए बाध्य रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक देशभक्त संगठन है और दुनिया भर के व्यक्तियों, संगठनों को संघ से काफी कुछ सीखने की आवश्यकता है।
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