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राष्ट्रहित और मुस्लिम समुदाय। आतंकवाद, अस्मिता एवं ज़िम्मेदारी : डॉक्टर राघवेंद्र शर्मा

राष्ट्रहित और मुस्लिम समुदाय
 आतंकवाद, अस्मिता एवं ज़िम्मेदारी

डॉ राघवेंद्र शर्मा।
​दिल्ली में हुए आतंकी हमले जैसी दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय घटनाएं, जिनमें आतंकवादी तत्वों का संबंध मुस्लिम समुदाय से जोड़ा जाता है। यह न सिर्फ़ राष्ट्र की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती हैं, बल्कि इनका असर पूरे मुस्लिम समुदाय की अस्मिता, उनकी पहचान और प्रतिष्ठा पर भी पड़ता है। हालांकि यह भी सत्य है कि एक आतंकवादी का कृत्य कभी भी पूरे समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता। लेकिन दुर्भाग्यवश, ऐसी घटनाएं अक्सर एक व्यापक सामाजिक ध्रुवीकरण और संदेह को जन्म देती हैं।
​राष्ट्रहित और मुस्लिम अस्मिता की रक्षा के लिए यह ज़रूरी है कि मुस्लिम समुदाय एक सक्रिय, मुखर और सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए आगे आए। यह लेख इसी विषय पर केंद्रित है कि राष्ट्रहित में मुस्लिम समुदाय को किस दिशा में और क्या कदम उठाने चाहिए।
​सबसे पहली जरूरत है आगे बढ़कर आतंकवाद को नकारना और उसका मुखर विरोध करना। क्योंकि​ आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। इस्लाम, जिसका अर्थ 'शांति' है। यह किसी भी रूप में हिंसा या निर्दोषों की हत्या का समर्थन नहीं करता। मुस्लिम समुदाय की पहली और सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है कि वह आतंकवाद को राष्ट्रहित और इस्लाम दोनों के लिए ख़तरा मानते हुए, इसका अचूक और बिना शर्त विरोध करे। इस तरह की आतंकवादी घटनाओं के बाद यह आवश्यक हो चला है कि मस्जिदों, मदरसों और मुस्लिम समाज के सामुदायिक मंचों से स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि आतंकवाद इस्लाम-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी है। इसी के साथ समुदाय के भीतर उन तत्वों या विचारधाराओं के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, जो चरमपंथ या हिंसा को बढ़ावा देते हैं। ऐसे कट्टरपंथियों को नकारना सामूहिक आलोचना करना ईवीएम किसी भी संकेत को मुस्लिम समाज द्वारा ठीक उसी प्रकार तुरंत सुरक्षा एजेंसियों के ध्यान में लाना चाहिए, जिस प्रकार खंडवा के मुसलमान भाइयों ने नकली नोट खपाने वाले मौलवी की पोल खोलकर एक बड़े कांड का खुलासा कर दिखाया था। सबसे बड़ी जिम्मेदारी अभिभावकों की है। युवा और संवेदनशील मस्तिष्क को कट्टरपंथी विचारों से बचाने के लिए माता-पिता, शिक्षक और धार्मिक नेताओं को सतर्क रहना होगा। भ्रामक, ऑनलाइन प्रचार या हिंसक साहित्य के ख़िलाफ़ मुस्लिम समाज में जागरूकता अभियान चलाना ज़रूरी है।​ राष्ट्रहित का सीधा संबंध देश के सामाजिक सद्भाव और आर्थिक विकास से है। मुस्लिम समुदाय को अपनी भारतीय पहचान को मज़बूत करते हुए राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनना चाहिए। शिक्षा कट्टरता के ख़िलाफ़ सबसे मज़बूत हथियार है। आधुनिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना और मदरसों में समकालीन विषयों को शामिल करना बेहद आवश्यक है। क्योंकि  शिक्षित युवा ही राष्ट्र की मुख्यधारा का अभिन्न अंग बनकर देश की प्रगति में योगदान देंगे। विभिन्न क्षेत्रों, कला, विज्ञान, खेल, व्यवसाय, राजनीति में अपनी प्रतिभा के बल पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करना और सकारात्मक रोल मॉडल स्थापित करना रास्तों को और आसान बनाएगा।  इससे रूढ़िवादी धारणाएँ टूटेंगी और समुदाय का आत्मविश्वास बढ़ेगा। अन्य समुदायों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करना और संवाद बढ़ाना भी समय की मांग है। "गंगा-जमुनी तहज़ीब" की परंपरा को मज़बूत करना, धार्मिक त्योहारों और आयोजनों में सक्रिय रूप से भाग लेना मुस्लिम समाज की कार्य प्रणाली में शामिल होना चाहिए। संदेह और डर को दूर करने का यही सबसे प्रभावी तरीका है। ​चरमपंथी विचार धाराएँ अक्सर धर्म की विकृत व्याख्याओं पर आधारित होती हैं। मुस्लिम अस्मिता को बचाने के लिए धार्मिक नेतृत्व को सुधारवादी और प्रगतिशील भूमिका निभानी होगी। धार्मिक नेताओं इमामों, मौलानाओं को इस्लाम के वास्तविक, शांतिपूर्ण और समावेशी संदेश को अधिक से अधिक प्रचारित करना चाहिए। उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि "जिहाद" का अर्थ आत्म-सुधार और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष है, न कि निर्दोष लोगों के ख़िलाफ़ जोखिम पूर्ण हालातों का निर्माण करना । महिलाएँ परिवार और समाज में शांति और सद्भाव की सबसे बड़ी प्रमोटर बन सकती हैं। भारतीय मुसलमानों का इतिहास हमेशा से राष्ट्र-प्रेम ही रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में उनके बलिदान और देश के विकास में उनके योगदान को गर्व के साथ याद किया जाना चाहिए और नई पीढ़ी को इससे परिचित कराना चाहिए। ​राष्ट्रहित में सबसे आवश्यक है देश की संवैधानिक संस्थाओं, क़ानून और व्यवस्था में विश्वास व्यक्त करना। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर देश के क़ानूनों का सम्मान करना और क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग करना सहज स्वभाव बनेगा तो माहौल और खुशनुमा बनेगा। आवश्यकता इस बात की है कि यदि हमें हमारे आसपास किसी व्यक्ति या समूह पर हमें संदेह है, तो यह सोचे बगैर कि वह किस संप्रदाय का है,  इसकी सूचना तुरंत सुरक्षा एजेंसियों को देनी चाहिए। सोशल मीडिया पर फैलने वाली नफ़रत और भ्रामक प्रचार का मुकाबला करने के लिए साक्षरता अभियान चलाया जाना वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता है। समुदाय के युवाओं को आतंकवादी और अलगाव बाद के खिलाफ तर्कसंगत, आलोचनात्मक सोच  के लिए प्रेरित करना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। कुल मिलाकर ​दिल्ली ब्लास्ट जैसी घटनाएँ मुस्लिम समुदाय के लिए एक गंभीर आत्म-चिंतन का अवसर है। सवाल यह नहीं है कि 'आप राष्ट्रवादी हैं या नहीं', बल्कि यह है कि 'आप आतंकवाद के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रयासों में कितने सक्रिय और अभिन्न भागीदार हैं?'
​राष्ट्रीय अस्मिता और मुस्लिम अस्मिता परस्पर विरोधी नहीं हैं, वे एक-दूसरे के पूरक हैं। भारतीय मुसलमान होने का अर्थ है राष्ट्र की सुरक्षा, सद्भाव और विकास के प्रति पूरी तरह समर्पित होना। जब मुस्लिम समुदाय मुखर होकर आतंकवाद को अस्वीकार करता है, शिक्षा और विकास पर ज़ोर देता है, और अन्य समुदायों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता है, तो वह न सिर्फ़ राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखता है, बल्कि अपनी अस्मिता को भी सशक्त और सम्मानजनक बनाता है।
​यही वह समय है जब मुस्लिम समुदाय को "पीड़ित" की भूमिका से बाहर निकलकर "समाधान का हिस्सा" बनना चाहिए। यह एकता, साहस और अटूट देशभक्ति का समय है।
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