धर्म के नाम पर अनिष्टकारी
अफरा तफरी ! कब तक ?
सीहोर के कुबेरेश्वर धाम में एक बार फिर भगदड़ मची। इस बार 6 भक्तों की अकाल मृत्यु हो गई । अनगिनत लोग घायल हो गए सो अलग। इस दुखद घटना का सर्वाधिक कलुषित पहलू यह है कि 72 घंटे से ज्यादा का समय बीत जाने पर भी जिम्मेदारी तय नहीं हो सकी कि हादसा किसकी वजह से हुआ। दोषी कौन ? जन चर्चाओं के मुताबिक यह तय करने के लिए बहुत ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत दिखती। क्योंकि जिम्मेदारी या तो आयोजन समिति की है अथवा पुलिस प्रशासन की। तीसरे किसी पक्ष की इसमें कोई भूमिका है ही नहीं। गौर करें, आयोजकों का दायित्व है वह अपेक्षित भीड़ के अनुसार आयोजन स्थल पर समुचित व्यवस्थाएं करें। जबकि पुलिस प्रशासन का कर्तव्य बनता है कि वह आयोजकों द्वारा किए गए इंतजामातों पर कड़ी दृष्टि बनाए रखें। साथ में यह भी जरूरी हो जाता है कि सरकारी सूचना तंत्र को अतिरिक्त सतर्क किया जाए। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भीड़ अनुमान या अपेक्षा से अधिक तो नहीं आ रही ? ऐसे में यह तैयारी भी रखनी होती है कि यदि लोग ज्यादा आ ही गए तो उनके संख्या दबाव को कैसे संभाला जाएगा। लेकिन स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि उपरोक्त अपेक्षाओं और अनुमानों को लेकर क्या आयोजक और क्या पुलिस प्रशासन, सब के सब असफल साबित हुए। जहां तक आयोजकों की बात है तो उनके बारे में पूरी जिम्मेदारी के साथ लिखा जा रहा है, वह बेपरवाह ही बने रहे । उसके भी कारण हैं - पहली बजह यह कि 2022 को 13 जुलाई के दिन आयोजित गुरु पूर्णिमा उत्सव में जब भोजन शाला का डोम गिरा और एक महिला की मौत हो गई तो ना आयोजन समिति का बाल बांका हुआ और ना ही मुख्य कर्ताधर्ता पंडित प्रदीप मिश्रा को किसी प्रकार की आंच आई। इसके बाद जब 2023 की 16 फरवरी को सीहोर और उसके आसपास के रास्ते जाम हो गए। हजारों वाहन शहर एवं हाईवे की सड़कों पर कई कई घंटों के लिए फंसकर रह गए। ऐसी अफरा तफरी मची कि लोगों को खेतों में शरण लेकर जान बचानी पड़ गई। खाद्य एवं पेय पदार्थ 10 - 10 गुना तक दाम चुका कर हासिल किये जा सके। फिर भी दो लोगों की जान चली ही गई।
दावे के साथ लिखा जा सकता है कि यदि पहली और दूसरी बार की बद इंतजामियों पर ही पुलिस प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों, कर्मचारियों, आयोजन समिति तथा प्रमुख कर्ताधर्ता आदि के प्रति कड़ा रुख अपनाया जाता तो एक ही तरह की गलतियां बार-बार नहीं दोहराई जातीं और जो अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए उनके प्राण बच जाते। लेकिन धार्मिक आभामंडल वह सुरक्षा कवच है जो कई बार दोषी धर्माधिकारियों, कानूनी नीति नियंताओं को भी निश्चिंतता प्रदान कर देता है। यही हाल सीहोर के श्रृंखलाबद्ध हादसों का है। पुलिस प्रशासन भली भांति जानता है कि पंडित प्रदीप मिश्रा का बहुत बड़ा प्रशंसक वर्ग देश भर में मौजूद है। ऐसे में यदि उन पर या उनके लोगों पर हाथ डाला गया तो अच्छा खासा बवाल खड़ा हो सकता है। जाहिर है इस बात को लेकर स्वयं पंडित प्रदीप मिश्रा और उनके कर्ताधर्ता भी संतुष्ट हैं। शायद यही वजह है कि सीहोर में धर्म की आड़ लेकर बरती जा रहीं लापरवाहियों के चलते एक के बाद एक हादसे घटित हो रहे हैं। लोगों की जानें जा रही हैं।लेकिन गलतियां अर्थात भूल चूक में सुधार देखने को नहीं मिल रहे। सीहोर का धार्मिक आभामंडल अब तक कुल नौ लोगों की बलि ले चुका है। फिर भी कथा प्रवक्ता पंडित प्रदीप मिश्रा कावड़ यात्रा में मुख पर मुस्कान लिए डीजे की थाप पर थिरकते दिखाई दे रहे हैं। कभी प्रवचन, कभी पूजा, तो कभी रुद्राक्ष वितरण के नाम पर लाखों की भीड़ इकट्ठी की जा रही है। हर बार अपर्याप्त इंतजाम अनिष्टकारी साबित हो रहे हैं। पुलिस प्रशासन को लेकर भी कम से कम इस मामले में जनधारणा अच्छी नहीं है। निसंदेह उसका सूचना तंत्र असफल साबित हुआ है। मौके पर मौजूद पुलिस बल की उदासीन तत्परता भी आम आदमी की सराहना प्राप्त नहीं कर पा रही। कुल मिलाकर धर्म की आड़ में फिलहाल तो सब के सब स्वच्छ और पवित्र ही दिख रहे हैं। कारण, मामला धर्म का है। जो आवाज उठाएगा उसे अधर्मी करार दे दिए जाने का खतरा है। ऐसे में केवल प्रार्थना ही की जा सकती है "है ईश्वर, हे परमपिता परमात्मा अपने भक्तों को आडंबर युक्त भीड़ चाल से बचाने का अब आप ही विशेष उद्यम करो तो कोई बात बने" !
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