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​वीर बाल दिवस : धर्म, साहस और सर्वोच्च बलिदान की अमर गाथा

​वीर बाल दिवस: धर्म, साहस और सर्वोच्च बलिदान की अमर गाथा

(26 दिसंबर वीर बाल दिवस पर विशेष)

डॉ राघवेंद्र शर्मा।
​भारत का इतिहास केवल राजाओं और युद्धों की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन बलिदानों की गाथा है जिन्होंने इस देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को जीवित रखा है। 26 दिसंबर का दिन भारतीय कैलेंडर में एक ऐसी तारीख के रूप में दर्ज हो चुका है, जो हमें याद दिलाता है कि साहस की कोई उम्र नहीं होती। 'वीर बाल दिवस' केवल एक राजकीय आयोजन नहीं है, बल्कि यह 10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह (9 वर्ष) और फतेह सिंह (7 वर्ष)—की अमर शहादत को नमन करने का दिन है। उन्हें यह महान त्याग क्यों करना पड़ गया ? इसके लिए महानतम ​बलिदान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात करना जरूरी है। तभी हम जान पाएंगे कि गुरु गोविंद सिंह जी के साहबजादों को बलिदान क्यों देना पड़ गया और उन्होंने कैसे भारत माता की अस्मिता बचाने के लिए खुद को कुर्बान कर दिया।
​साहिबजादों के बलिदान को समझने के लिए हमें 18वीं शताब्दी के उस दौर को समझना होगा, जब भारत पर मुगल सत्ता का क्रूर शिकंजा कसा हुआ था। उस समय दिल्ली की गद्दी पर मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब की नीतियां धार्मिक कट्टरता और जबरन धर्म परिवर्तन पर आधारित थीं। गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके खालसा पंथ ने इस अत्याचार के विरुद्ध दीवार बनकर खड़े होने का संकल्प लिया था।
​आनंदपुर साहिब के किले की घेराबंदी के बाद, जब गुरु जी का परिवार बिछड़ गया, तो माता गुजरी जी और दोनों छोटे साहिबजादों को उनके पुराने रसोइए गंगू ने लालच में आकर सरहिंद के नवाब वजीर खान के हवाले कर दिया।
​सरहिंद की दीवार और अडिग विश्वास
​वजीर खान जो औरंगजेब के अधीन एक सूबेदार था, उसने नन्हें साहिबजादों को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर करने के हर संभव प्रयास किए। उन्हें लालच दिया गया, डराया गया और ठंडी बुर्ज में भूखा-प्यासा रखा गया। लेकिन, गुरु गोबिंद सिंह जी के इन 'शेरों' ने स्पष्ट कह दिया कि ​"हम उस गुरु के पुत्र हैं जिसने धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश दे दिया, हम झुकना नहीं जानते।"
​अंततः, जब नवाब और उसके काजी साहिबजादों के इरादों को नहीं बदल पाए, तो औरंगजेब के क्रूर शासन के आदेशानुसार उन्हें दीवार में जिंदा चुनवा देने की सजा सुनाई गई। 26 दिसंबर 1705 को, इन वीर बालकों ने हँसते-हँसते मौत को गले लगा लिया, लेकिन अपने धर्म और स्वाभिमान का सौदा नहीं किया। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर ​वीर बाल दिवस बनाए जाने की शुरुआत देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 से की। ​दशकों तक इन वीर बालकों का बलिदान इतिहास की किताबों के कुछ पन्नों तक सीमित रहा। लेकिन 9 जनवरी 2022 को, गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि हर साल 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। इसका उद्देश्य केवल शोक मनाना नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह बताना है कि भारत की नींव उन बच्चों के बलिदान पर टिकी है जिन्होंने मुगलों के क्रूर साम्राज्य की ताकत के आगे झुकने से इनकार कर दिया था। ​इस दिवस का व्यापक उद्देश्य और महत्व ​राष्ट्रीय चेतना का जागरण है।वीर बाल दिवस का मुख्य उद्देश्य देश के बच्चों और युवाओं को साहिबजादों के साहस से अवगत कराना है। यह उन्हें सिखाता है कि सत्य के मार्ग पर चलते हुए डरना नहीं चाहिए। यही वजह है कि वर्तमान भारत सरकार वीर बाल दिवस को ​सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक भी मानती है। यह दिन भारतीय इतिहास के उस पक्ष को उजागर करता है जिसे अक्सर नजरअंदाज किया गया। यह मुगलों के अत्याचार के विरुद्ध सिख गुरुओं के अद्वितीय संघर्ष को राष्ट्रीय पहचान देता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण अनुसार, एक विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए उसकी भावी पीढ़ी का चरित्रवान और साहसी होना आवश्यक है। साहिबजादों का जीवन बच्चों के लिए साहस, नैतिकता और बलिदान का सबसे बड़ा उदाहरण है। भाजपा की केंद्र सरकार की मंशा अनुरूप इस दिन देश भर में ​राष्ट्रव्यापी आयोजन और सम्मान समारोह आयोजित किए जाते हैं। ​आज इस दिन को पूरे भारत में गौरव के साथ मनाया जाता है। स्कूलों में निबंध प्रतियोगिताएं, कविता पाठ और नाटकों के माध्यम से साहिबजादों की गाथा सुनाई जाती है। इसी समय के आसपास 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' भी चर्चा में रहते हैं, जो उन बच्चों को दिए जाते हैं जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में असाधारण बहादुरी दिखाई है। लिखने का आशय यह कि ​साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह का बलिदान हमें यह सिखाता है कि जब बात धर्म, कर्तव्य और सत्य की हो, तो कोई भी उम्र छोटी नहीं होती। औरंगजेब की सत्ता और वजीर खान की क्रूरता उन नन्हें दिलों की धड़कन को तो बंद कर सकती थी, लेकिन उनके विचारों और उनके प्रभाव को नहीं दबा सकी।
​आज 'वीर बाल दिवस' के अवसर पर, भारत अपनी उस विरासत को नमन करता है जो हमें सिखाती है कि -
सिर जावे तां जावे, पर मेरा सिक्खी सिदक न जावे। अर्थात - चाहे सिर कट जाए, लेकिन मेरा धर्म और विश्वास न छूटे। ​यह दिन केवल सिखों का नहीं, बल्कि हर उस भारतीय का है जो स्वाभिमान और वीरता में विश्वास रखता है। आइए, हम सब मिलकर इस दिन को साहिबजादों की वीरता और भारत के उज्जवल भविष्य के संकल्प के रूप में मनाएं।
लेखक मध्य प्रदेश बाल कल्याण आयोग के पूर्व अध्यक्ष, मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के निवृतमान प्रदेश कार्यालय मंत्री तथा वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के "मन की बात" के प्रदेश संयोजक हैं. राजनीति और सामाजिक क्षेत्र के अनेक ग्रंथों का सृजन करने का श्रेय लेखक को प्राप्त है।
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