चिकित्सकों के प्रति संवेदनाओं का
मरण मानव समाज के लिए घातक
चिकित्सकों और रोगियों के बीच मतभेदों की एक अनदेखी खाई दिनों दिन गहरी होती जा रही है। आए दिन सुनने में आता है कि किसी रोगी का सही इलाज न होने पर, या फिर दुर्भाग्यवश उसका अनिष्ट हो जाने पर रोगी के परिजन चिकित्सकों और चिकित्सीय स्टाफ पर हावी हो जाते हैं। कई बार उनकी जान पर भी बन आती है। यह परिदृश्य बेहद चिंताजनक है। हालांकि हम यह मानते हैं कि चिकित्सा सेवा भी अब तेजी से मुनाफा वाले व्यवसाय में तब्दील होता जा रहा है। शासकीय सेवा में रहते हुए कुछ चिकित्सक रोगियों से अतिरिक्त पैसा लेकर अपने घरों पर उनका इलाज करने में ज्यादा रुचि लेते हैं। प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में तो मरीज और उसके परिजनों की जेब देखकर ही इलाज किया जाता है। लेकिन यह बात भी सही है कि चिकित्सकों के बहुत बड़े वर्ग में अभी भी ऐसी सेवादार बने हुए हैं, जो रोगियों के लिए जीते हैं और रोगियों की सेवा करते-करते ही मरखप जाते हैं। यही बात नर्सों, बोर्ड बॉयज और अन्य चिकित्सीय स्टाफ पर भी लागू होती है। इसके बावजूद भी मानव समाज चिकित्सकों और चिकित्सा क्षेत्र के अन्य कर्मचारियों को लेकर दिनों दिन गैर संवेदनशील होता जा रहा है। इसका कारण कुछ चिकित्सकों का आपत्तिजनक व्यवहार हो सकता है। लेकिन हम कुछ लोगों की वजह से सभी को लापरवाह और कर्तव्यों के प्रति उदासीन मान लें, यह भी इनके साथ न्याय नहीं होगा। इसलिए पहले शासन प्रशासन और स्वयं चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि उन्हें अपने व्यवहार में बड़े पैमाने पर परिवर्तन करने की आवश्यकता है। दूसरी बात यह कि पूरे मध्य प्रदेश में चिकित्सा और चिकित्सीय स्टाफ की बेहद कमी है। इस क्षेत्र में कार्य कर रहे तकनीकी कर्मचारियों का भी भारी अभाव बना हुआ है। फल स्वरुप संसाधन तो उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें चलाने वाले हाथ मुहैया न होने से रोगियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यही हालत चिकित्सकों को लेकर है। चूंकि उनकी तादाद कम है और रोगी अस्पतालों की क्षमता से कई कई गुना ज्यादा हैं। लिहाजा चिकित्सकों पर सेवा कार्य काअतिरिक्त दबाव बना रहता है और वह समय के साथ चिड़चिड़े होते चले जाते हैं। अफसोस की बात यह है कि मानव समाज अपनी परेशानी को तो देखता है, लेकिन वह यह समझना नहीं चाहता कि जो चिकित्सक 10 का काम अकेले करेगा, अंततः उसे कभी ना कभी तो थकना ही है, चिड़चिड़ा होना ही है। लेकिन अपने संवेदनशील और स्नेही व्यवहार के साथ हम उन्हें लंबे समय तक अपने अनुकूल बनाए रख सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम चिकित्सकों की परेशानियों को समझें और उनकी परेशानियों में उनके साथ खड़े होना सीखें। ताकि उनको ऐसा लगे कि यदि वे समाज के लिए कुछ कर रहे हैं तो समाज भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हुआ है। यहां एक उदाहरण देना उचित रहेगा। बीते साल के अंतिम महीनों में राजधानी के गांधी मेडिकल कॉलेज परिसर में कुछ सामाजिक तत्वों ने महिला डॉक्टर पर अश्लील कटाक्ष किये और मेडिकल स्टूडेंट्स की गाड़ी में तोड़फोड़ की। यह हालत तब है जब बीते लंबे समय से चिकित्सालय परिसर में असामाजिक तत्वों की आवाजाही चर्चा का विषय बनी हुई है। ऐसा भी नहीं है कि इस मामले से पुलिस प्रशासन अवगत नहीं है। इसके बावजूद बीते रोज कैंपस में खड़ी मेडिकल स्टूडेंट की गाड़ी को तोड़ा फोड़ा गया। जबकि नाईट ड्यूटी पर जा रही महिला चिकित्सक पर अश्लील कमेंट्स किए गए। इस बारे में सक्षम अधिकारियों को अवगत भी कराया गया। लेकिन लंबे समय तक कोई निर्णायक कार्रवाई देखने को नहीं मिली। एक प्रकार से यह शर्मनाक घटना तो थी ही, महिला चिकित्सक और मेडिकल स्टूडेंट्स के ऊपर प्राण घातक हमला भी था। अपेक्षा है जांच के बाद, आज नहीं तो कल अपराधियों को पकड़ लिया जाएगा। लेकिन यहां आवश्यकता इस बात की है कि जब परेशानी चिकित्सा क्षेत्र के लोगों को होती है तो हम उन्हें उन्हीं के हाल पर छोड़ देते हैं। जबकि यह उचित नहीं है। होना तो यह चाहिए था कि शेष मानव समाज इन विपरीत हालातो में चिकित्सकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होता। कम से कम वो लोग जो रोगी होने के नाते अस्पताल में अपना इलाज कर रहे हैं, या फिर वे लोग जो रोगियों की सेवा में लगे हुए हैं, ऐसे रोगियों के परिजन स्वजन तो महिला चिकित्सक और मेडिकल स्टूडेंट के पक्ष में खड़े हो ही सकते हैं। भविष्य में भी इस व्यवहार की आवश्यकता है कि जब कभी चिकित्सकों, चिकित्सा स्टाफ के हित की बात हो और उन्हें आंदोलन करने की आवश्यकता पड़ जाए तो आम जनमानस को उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना ही चाहिए। शायद यह सकारात्मक व्यवहार चिकित्सकों के मन में संवेदनाओं का इजाफा करे और उनका रोगियों के प्रति व्यवहार कुछ और अधिक संवेदनशील, कुछ और अधिक सहयोगात्मक हो जाए!
#doctor #nurses #health department #government hospital #patient #ward boy #cesarean operation #Gandhi medical College #hamidiya aspataal #Bhopal #medical student
0 टिप्पणियाँ