Header Ads Widget

Responsive Advertisement

Ticker

6/recent/ticker-posts

Jama masjid कमेटी के नाम तय,जिला सदर को भनक तक नहीं !

Jama masjid कमेटी के नाम तय,
जिला सदर को भनक तक नहीं !

गुना, शब्दघोष। प्यार और जंग को लेकर इंग्लिश में एक कहावत वर्षों से स्थापित हैं। इसे यूं कहते हैं - एवरीथिंग इज फेयर इन लव एंड वार। इसी प्रकार राजनीति के बारे में कहा जाए "एवरीथिंग इज पॉसिबल इन पॉलिटिक्स" तो गलत नहीं होगा। क्योंकि हमें राजनीति में समय-समय पर ऐसे घटनाक्रम देखने को मिलते रहते हैं, जिन्हें देखकर अधिकांशतः आम आदमी यह बुदबुदा उठना है "अरे यह कैसे हो सकता है? 
ऐसा ही एक घटनाक्रम गुना जिला वक्फ कमेटी अंतर्गत शहर की शाही जामा मस्जिद कमेटी को लेकर घटित होना चर्चाओं में है। चर्चाओं में घटनाक्रम यह बताया जा रहा है कि जिला स्तर से गुना शहर की शाही जामा मस्जिद कमेटी के लिए अध्यक्ष और सदस्यों के नाम भोपाल भेजे जा चुके हैं। अब अनुशंसा करने वालों को और अनुशंसित व्यक्तियों को केवल मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड के प्रदेश अध्यक्ष सनव्वर पटेल की मंजूरी का इंतजार है। इसमें सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि जिस पदाधिकारी के द्वारा यह कार्रवाई संपादित होना चाहिए, वह जिला वक्फ कमेटी के जिला सदर और भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष जाकिर खान बावड़ी इस पूरे मसले से खुद को अनभिज्ञ बता रहे हैं। इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात सूत्र यह बता रहे हैं कि शाही जामा मस्जिद कमेटी गुना के सदर पद हेतु एक ऐसे व्यक्ति का नाम मंजूरी के लिए भोपाल भेजा गया है, जो परंपरागत रूप से कभी वर्तमान सत्ता से संबद्ध किसी भी राष्ट्रवादी संगठन से बावस्ता रहा ही नहीं। यही नहीं अनुशंसा भी ऐसे व्यक्ति की हो गई बताई जाती है जो "पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है" हमेशा इस आशय का दावा आम चर्चाओं में करता रहा है। नतीजतन जन चर्चाएं यह हैं कि जिसका अनुशंसा करने वाले संगठन से कालांतर में कोई संबंध रहा ही नहीं, जो हमेशा "पैसे के दम पर सब कुछ खरीदा जा सकता है" का दावा करता रहता हो, शाही जामा मस्जिद कमेटी के सदर पद के लिए ऐसे व्यक्ति की अनुशंसा हुई तो हुई कैसे?
बताया यह जा रहा है कि कथित अनुशंसा को लेकर परंपरागत पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष व्याप्त है। खुसर-पुसर यह हो रही है कि हम संगठन की जाजम बिछा बिछा कर बूढ़े हुए जाते हैं और बाहर से आयातित अवसरवादी धनाढ्य पैराशूट लैंडिंग पद्धति से महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होते चले जा रहे हैं।
इस बारे में हमने भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला अध्यक्ष और जिला वक्फ कमेटी के सदर जाकिर खान बावड़ी से जानकारी चाही तो उन्होंने इस पूरे मामले से ही खुद को अनभिज्ञ बता दिया। जब उनसे पूछा गया कि उनकी सहमति के बगैर गुना की शाही जामा मस्जिद कमेटी के गठन बाबत अनुशंसा भोपाल कैसे चली गई? तो उन्होंने कहा कि न तो मेरे द्वारा कोई नाम भोपाल भेजे गए हैं और न ही किसी की अनुशंसा की गई है।
बस यही वह पहलू है जो हर किसी को आश्चर्य चकित कर रहा है कि जिला स्तरीय एक पदाधिकारी द्वारा सदर पद सहित 11 लोगों के नाम मंजूरी के लिए भोपाल भेजे जा चुके हैं। लेकिन जिसकी अनुशंसा अथवा सहमति के बगैर उपरोक्त कवायद संभव ही नहीं लगती, वही खुद को पूरे मामले से अनभिज्ञ बता रहा है और दावा कर रहा है कि मैंने कोई नाम भेजे ही नहीं, कोई अनुशंसा की ही नहीं। इसीलिए राजनीति को लेकर यह कहावत स्थापित होने लगी है - एवरीथिंग इस पॉसिबल इन पॉलिटिक्स।
अब कौन सही बोल रहा है कौन गलत, नाम भेजे गए हैं अथवा नहीं, अनुशंसा हुई है या नहीं, इसका भेद आने वाला समय ही बेहतर खोल पाएगा। अनुशंसित नामों की सूची संबंधी चर्चाएं कितनी खरी हैं, यह जानने के लिए थोड़ा इंतजार करना ही बेहतर रहेगा।
#jama masjid #Guna #Madhya Pradesh #waqf board #BJP #minority #Muslim #Congress #politics #Mohanlal Modi #shabdghosh

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ