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VIP महिलाओं पर हमले और बेइज्जती पर इस्तीफा एवं FIR

देश की महिला नेत्रियां ही असुरक्षित, साधारण मां बहनों की रक्षा कौन करे

मोहनलाल मोदी
कहते हैं राजनीति पद पैसा और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए की जाती है। वर्तमान परिदृश्य को देखा जाए तो जनता की यह धारणा पूरी तरह गलत भी नहीं है। जहां देखो वहां केवल और केवल राजनेता व जनप्रतिनिधि अति विशिष्ट होने का उच्चतम प्रदर्शन करते हुए नागरिकों के साथ ठीक उसी प्रकार व्यवहार करते दिखाई देते हैं, जैसे एक शासक अपनी प्रजा के साथ करता है। यानि यह मान लिया गया है कि भारतीय लोकतंत्र में राजनीति, नेताओं द्वारा, नेताओं के लिए, नेताओं की ही एक लाभदायक पेशेवर कार्य प्रणाली है। इससे भावार्थ यह निकलता है कि यदि राजनीति में कोई सुखी और सुरक्षित है तो वह नेता वर्ग ही है। लेकिन कुछ समय से देखने में आ रहा है कि अब नेता भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं खासकर उस स्थान पर, जहां पर उन्हें सुरक्षित रहना ही चाहिए था। शुरुआत कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता राधिका खेड़ा से करना उचित रहेगा। उन्होंने स्वयं यह माना कि छत्तीसगढ़ के कांग्रेस कार्यालय में कांग्रेस नेताओं द्वारा ही उनके साथ अभद्रता की गई तथा आपत्तिजनक शब्द कह गए। यदि राधिका खेड़ा की मानें तो उन्होंने इस बारे में कांग्रेस के सभी शीर्षस्थ नेताओं को अवगत कराया तथा उनसे कड़ी कार्रवाई की मांग करती रहीं। व्यक्तिगत रूप से मिलने का समय भी मांगा गया, ना तो वह मिला और ना ही दोषी पार्टी नेता के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई की गई। राधिका खेड़ा के कुछ सवाल केवल राजनेताओं से ही नहीं जनता से भी जवाब चाहते हैं। वह कहती हैं कि "लड़की है लड़ सकती है" कांग्रेस का एक समय यह बड़ा फेमस नारा रहा है। लेकिन मेरे साथ जो कुछ हुआ, उसके बाद मुझे न्याय देने की बजाय वरिष्ठों द्वारा मुझे ही मुंह बंद करने की हिदायत दी गई तो ऐसा लगा जैसे कांग्रेस मुझसे कह रही है कि "लड़की हो तो पिटोगी। उनका दूसरा सवाल यह भी है कि एक समय वह भी था जब कांग्रेस की प्रत्येक बैठक, यहां तक की राष्ट्रीय अधिवेशनों का शुभारंभ भी "रघुपति राघव राजा राम" के साथ हुआ करता था। लेकिन आज की कांग्रेस है कि श्री राम के नाम को सुनकर ठीक उसी प्रकार भड़कती है जैसे किवदंतियों के अनुसार लाल कपड़ा देखकर कोई सांड भड़क उठता है। 
यह तो केवल अभद्रता और बदसलूकी का ही मामला रहा, इसलिए इसे गनीमत कहा जा सकता है। लेकिन आम आदमी पार्टी के भीतर जो कुछ हुआ वह गानीमत की मर्यादाओं को भी पार कर गया। आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद हैं स्वाति मालीवाल। स्वाति के साथ केवल बदसलूकी नहीं हुई, उनके साथ अभद्रता और मारपीट भी की गई। उन्हीं के कथन अनुसार उन्हें लातों और थप्पड़ों से मारा गया। ऐसा करने का आरोपी व्यक्ति भी कोई साधारण न होकर दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल का निज सचिव है। जब उसके द्वारा यह सब किया गया तभी यह मामला सोशल मीडिया पर आ चुका था। लेकिन स्वाति मालीवाल संभवत: मामले पर राजनीति नहीं करना चाहती थीं। शायद यही वजह रही कि उन्होंने अपनी बेइज्जती के तीन दिन बाद तक पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखाई। यहां तक कि सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी में आने पर जब पुलिस ने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने दिल्ली पुलिस से भी वेट करने का आग्रह किया। शायद यह आग्रह इसलिए भी रहा, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि जब मामला अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की जानकारी में आएगा तब उन्हें न्याय अवश्य मिलेगा। लेकिन घोर आश्चर्य! कांग्रेस नेता राधिका खेड़ा की तरह ही आप सांसद स्वाति मालीवाल को भी निराशा ही हाथ लगी। आप नेता चुनाव प्रचार में व्यस्त बने रहे और उन्हीं की पार्टी की एक सांसद न्याय के लिए उनकी ओर केवल आशा भरी निगाहों से निहारती रह गई। गनीमत है कि केंद्रीय महिला आयोग सक्रिय हुआ और उसकी पहल पर दिल्ली की पुलिस स्वाति मालीवाल के निवास पर पहुंची। वहां उनका हाल-चाल जाना, अब उनके द्वारा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निज सहायक के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हो पाई है। यह सब लिखने का आशय केवल इतना सा है कि जिनके साथ अभद्रता और मारपीट हुई है ना तो वे साधारण लोग हैं, और जिनके द्वारा की गई है वे भी कतई असाधारण ही हैं। सबसे बड़ी बात यह कि जहां यह सब हुआ, वह स्थान कम से कम उन कृत्यों के लिए तो नहीं पहचाने जाने चाहिए, जो कृत्य वहां से उभर कर सामने आ रहे हैं। क्योंकि दोनों ही शर्मानाक घटनाओं में से एक वारदात स्थल कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय का है, तो दूसरा वारदात स्थल दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय का है। जो अपमान, अभद्रता और मारपीट का शिकार हुईं, उनमें से एक पीड़िता कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं तो दूसरी आम आदमी पार्टी की सम्मानित राज्यसभा सांसद। ऐसे में सवाल यह उठता है कि हमारे देश में जिन्हें नीति नियंता और हमारा खैर ख्वाह कहा जाता है, यदि वही नेता और खासकर महिला जनप्रतिनिधि सुरक्षित नहीं रह गए हैं, तो फिर उनसे संबंधित राजनीतिक दल यह दावा कैसे कर सकते हैं कि उनके हाथ में सत्ता आ जाने से सर्वत्र शांति और सुरक्षा का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा!
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