एक बार फिर बंगलादेश में दंगे भड़के तो उसका दंड पुन: हिंदुओं को ही भुगतना पड़ गया। यूं तो वहां के अनेक हिंदु हिंसा का निशाना बने, लेकिन दीपूचंद दास की हत्या इतनी वीभत्सता के साथ सामने आई कि उसे देख कर दुनिया भर की सज्जन शक्ति के होश उड़ गए। अत: अधिकांश देशों में चर्चा केवल उसी हत्याकांड की हो रही है। मृतक का दोष केवल इतना था कि वो हिंदु था, बस इसीलिए उसे पाक प्रायोजित हिंसा के दरमियान घेरा गया और पीट पीटकर मौत के घाट उतार दिया गया। उससे भी मन न भरा तो दंगाइयों ने दीपू की खाल में हुक फंसा कर उसे पेड़ पर टांगा और नीचे से आग लगा दी। इस नृशंस हत्या की विश्वभर में निंदा हो रही है। यहां तक कि विश्व की संवैधानिक संस्थाएं भी बंगलादेश को अपने यहां अनुशासन कायम करने की हिदायतें देने लगी हैं। लेकिन आश्चर्य इस बात पर है कि भारत के अधिकांश सैक्यूलरवादी हिंदुओं ने अभी तक इस बावत कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करना तो दूर, कड़ा बयान तक जारी नहीं किया। इस सोचे समझे घृणात्मक कृत्य की जितनी निंदा की जाए कम है। क्यों कि ये वही लोग हैं जो किसी मुसलमान के साथ जरा सी ऊंचनीच भर हो जाने पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं। लेकिन हिंदुओं के सामूहिक कत्ल भी हो जाएं तो इन मोटी चमड़ी वालों के मुंह में दही जम जाता है। कटु सत्य यही है कि हिंदुओं के एकमात्र देश भारत में ही धर्म निरपेक्षता के नाम पर हिंदु बुरी तरह बंटा हुआ है। उसके बहुत बड़े हिस्से का इस स्तर पर ब्रेन वॉश किया जा चुका है कि वो अक्सर हिंदुओं के हितों के खिलाफ ही बयानबाजी करता रहता है। अब देखो न, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, कम्युनिष्ट पार्टी, शिवसेना उद्धव, राष्ट्रवादी कांग्रेस शरद, आम आदमी पार्टी, द्रमुक, झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस, एमडीएमके, राष्ट्रीय जनता दल, समेत अधिकांश दलों के नेता और अध्यक्ष मूलत: हिंदू ही हैं, लेकिन ये बोलते हमेशा हिंदुओं के हितों के खिलाफ ही हैं। जबकि मुसलमानों और उनके नेताओं में इस बावत कट्टरता देखने को मिलती है। अपवाद छोड़ दें तो ये किसी भी दल में रहें, मुसलमानों के हित को लेकर तो मुसलमान एक स्वर में ही बात करते हैं। हम ये नहीं कहते कि मुसलमानों का हित नहीं होना चाहिए और न ये चाहते हैं कि जिस प्रकार मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में हिंदुओं के कत्ल होते हैं, उनकी बहन बेटियों के बलात्कार किए जाते हैं, वैसा व्यवहार हिंदु बाहुल्य क्षेत्रों में मुसलमानों के साथ भी हो। लेकिन इतनी कट्टरता तो अवश्य चाहेंगे कि हिंदू मुसलमानों का बुरा भले न चाहें लेकिन उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर तो जागरूक हो ही जाना चाहिए। खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि फिलहाल हिंदु कट्टर तो दूर, वो अपने हितों को लेकर जागरूक तक नहीं है। यही कारण है कि उसकी बातों और अधिकारों को गंंभीरता से नहीं लिया जाता। बाहर तो बाहर, वो अपने देश में भी सताया जाता है। क्योंकि हिंदु धर्म निरपेक्षता के नाम पर जातियों और दलाें में बांट दिया गया है। इसलिए वो विभिन्न जगहों पर अलग अलग तरह का हिंदु है। जैसे - भाजपा का हिंदु, कांग्रेस का हिंदु, कम्युनिस्ट हिंदु, सपा वाला हिंदु आदि आदि। जबकि होना ये चाहिए था कि भले ही राजनैतिक मुद्दों पर मतभेद बने रहते, लेकिन हिंदुत्व के मुद्दे पर तो हिंदु को एकजुट ही रहना था। बंग्लादेश के मुद्दे पर तो उसे अपने नेताओं को भी झकझोरना था और पूछना था कि बता तू मेरे और मेरे हिंदुत्व की बात पर नपुंसक क्यों बन जाता है। तेरा पुरूषत्व मुसलमानों की भलाई के लिए ही क्यों जागता है। जैसे मुसलमान को ही लें, वो किसी भी दल का नेता या सदस्य या पदाधिकारी हो, लेकिन मुसलमानियत के नाम पर वो झट से एक हो जाता है। चूंकि मुसलमान अपने जायज और यहां तक कि नाजायज हितों को लेकर भी एकजुट है। नतीजतन उसकी हर बात को पत्थर की लकीर माना जा रहा है। क्या ये सच्चाई विभिन्न दलों में बंटे हिंदुओं को नजर नहीं आती। यदि आती है ताे फिर अपने ही भाइयों पर हो रहे अमानुषिक अत्याचारों को देखकर भी उनका खून क्यों नहीं खोलता, ये चिंतन का बिषय है। बंग्लादेश की वीभत्स घटना को लेकर भी यदि किसी भारतीय का खून ठंडा ही बना रहता है तो फिर उसे हिंदू मानना भी नहीं चाहिए। अरे, उनसे तो वे हिंदू ज्यादा अच्छे हैं जो विदेशों में रह रहे हैं। वहां उन्होंने बड़े आंदोलन खड़े कर दिखाए हैं। नतीजा ये है कि अमेरिका, रूस, जर्मनी, इटली, कनाडा, ब्रिटेन आदि देशों और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र को भी बंग्लादेश की भर्त्सना करनी पड़ रही है। वहां की अंतरिम सरकार को हिदायत दी जा रही है कि वो अपने यहां की कानून व्यवस्था को तत्काल ठीक करे। लेकिन भारत में हिंदु हत्या के खिलाफ झंडा अधिकांशत: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने ही बुलंद कर रखा है1 जिसमें भाजपा कार्यकर्ता भी शामिल हैं। बाकी राजनैतिक दलों से सम्बद्ध नेताओं और कार्यर्ताओं ने अभी उदासीनता ही ओढ़े रखी है। जैसे वे हिंदू हैं ही नहीं और न ही उन्हें हिंदुत्व से कोई लेना देना है। ये अवस्था बेहद खतरनाक है, हिंंदुओं को इस बावत आत्म मंथन की आवश्यकता है। उन्हें इतिहास से सीखना चाहिए कि चाहे मुगल हों या फिर अंग्रेज, सभी ने हिंदुओं में फूट डाल कर ही उनका जीना मुहाल किया था और भारत सदियों तक गुलाम बना रहा।
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