जल प्रदूषण एक गंभीर और ज्वलंत विषय है। जल प्रदूषण की भयावहता और इसके कारणों से निर्मित परिदृश्य चिंताजनक है।
जल, जिसे भारतीय संस्कृति में 'जीवन'' का दर्जा प्राप्त है, आज एक गंभीर संकट के केंद्र में है। नदियों, तालाबों, कुओं और यहां तक कि भूजल तक का प्रदूषित होना, मानवता और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। गौर से देखा जाए तो जल प्रदूषण की अवस्था चिंतनीय है। यह केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य, अर्थ व्यवस्था और सामाजिक न्याय से जुड़ा एक बहुआयामी संकट है। इस लेख में, हम जल प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों, इसके हानिकारक प्रभावों और इस राष्ट्रीय चुनौती का सामना करने के लिए आवश्यक सामूहिक दायित्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे। जल निकायों में गंदगी का मिलना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें औद्योगिक, घरेलू, धार्मिक और संस्थागत लापरवाहियां शामिल हैं। फैक्ट्रियों से निकलने वाला रासायनिक और जहरीला पानी जल प्रदूषण का सबसे घातक कारण है। यह जहरीला पानी बिना किसी पर्याप्त उपचार के सीधे नदियों में बहा दिया जाता है, जो अंततः समुद्र तक पहुंचता है। इनमें भारी धातुएं, जैसे पारा, सीसा, कैडमियम, सायनाइड, विषैले एसिड और क्षार शामिल होते हैं। ये रसायन जलीय जीवों के लिए प्राणघातक हैं और खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मनुष्यों में पहुंचकर कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार और अन्य गंभीर बीमारियां पैदा करते हैं।
यह प्रदूषण तटीय पारिस्थितिकी तंत्र और समुद्री जीवन को नष्ट कर रहा है, जिससे मत्स्य उद्योग और समुद्री जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। घरेलू और औद्योगिक कचरे का नदियों में निस्तारण उन्हें शाब्दिक अर्थों में "गंदे नालों में तब्दील" कर रहा है।शहरों का सीवेज (मल-जल) अक्सर अनुपचारित ही नदियों में छोड़ दिया जाता है, जिससे जल में रोगजनक बैक्टीरिया और इसका पोषण करने वाले तत्व अत्यधिक बढ़ जाते हैैं। इस प्रकार के पोषक तत्वों की अधिकता से नदियों तालाबों और यहां तक की समुद्र में शैवाल बहुत तेजी से बढ़ते हैं। ये शैवाल पानी की सतह को ढक लेते हैं, जिससे जलीय पौधों तथा जीव जंतुओं को सूर्य का प्रकाश नहीं मिल पाता और पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, अंततः जलीय जीव मर जाते हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक प्रदूषण भी पानी को विषैला बना रहा है। आस्था का अंधापन यहां तक पहुंच गया है कि पूजन सामग्री और मूर्ति विसर्जन के नाम पर तालाबों, कुओं और बावड़ियों का गंदा होना एक सांस्कृतिक त्रासदी बन गई है। प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) की मूर्तियां, रासायनिक रंगों, प्लास्टिक, थर्माकोल और पूजन सामग्री में लिपटे सिंथेटिक कपड़ों का उपयोग जल निकायों को टॉक्सिक डंपिंग ग्राउंड बना देता है। कुए और बावड़ियां, जो सदियों से स्थानीय जल स्रोत रहे हैं, इस प्रदूषण के कारण अनुपयोगी हो गए हैं, जिससे भूजल पुनर्भरण की क्षमता भी प्रभावित हुई है। जल की स्वच्छता पर घरेलू सफाई उत्पाद भी कम खतरनाक नहीं हैं। घर से निकलने वाला 'घातक' पानी
भी प्राकृतिक जल स्रोतों का नाश कर रहा है। घरों में सफाई के नाम पर अत्यधिक क्षारीय और रासायनिक पदार्थों का उपयोग निस्तार के पानी को घातक बना रहा है। ड्रेन क्लीनर, फर्श क्लीनर और डिटर्जेंट में फॉस्फेट, अमोनिया और क्लोरीन जैसे रसायन होते हैं। ये रसायन जब सीवेज सिस्टम में प्रवेश करते हैं, तो वे उपचार संयंत्रों की दक्षता को कम करते हैं और सीधे जल निकायों में पहुंचकर प्रदूषण फैलाते हैं।
संस्थागत और सामाजिक उदासीनता भी इस बारे में एक बड़ी विफलता है।
जल प्रदूषण की इस विकट स्थिति के लिए केवल उपयोगकर्ता ही नहीं, बल्कि शासकीय और स्थानीय निकाय भी समान रूप से जिम्मेदार हैं। अनेक शहरों और गांवों में शौच तथा अन्य गंदगी को सीधे नदियों के हवाले करना स्थानीय निकायों की जघन्य लापरवाही को दर्शाता है। अधिकांश सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट या तो मौजूद नहीं हैं, या उनकी क्षमता बहुत कम है, या वे खराब रख रखाव के कारण निष्क्रिय पड़े हैं। यह बुनियादी ढांचागत विफलता जल निकायों को खुले शौचालय में बदल देती है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य शासकीय विभागों का उदासीनता भरा रवैया इस समस्या को और भी गहरा कर रहा है। प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर सख्त कार्रवाई, निगरानी और दंडात्मक प्रावधानों को लागू करने में भारी ढिलाई बरती जाती है। 'चलता है' की मानसिकता ने नियमों को कागजी दस्तावेज बना दिया है। ऐसे में समाधान की राह अंततः हमें ही खोजनी होगी। व्यक्तिगत जागरूकता से लेकर कठोर नीति तक इस गंभीर प्रदूषण को हमें ही रोकना होगा। जल की स्वच्छता के लिए हर व्यक्ति का जागरूक और दायित्ववान होना बेहद जरूरी है। इसके लिए एक बहु-स्तरीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। संभव है इसके लिए समाज शासन और अन्य दायित्ववान प्राधिकरणों को कठोर कानूनी कार्रवाई और उसके बुनियादी ढाँचों पर कार्य करना पड़ जाए। औद्योगिक इकाइयों द्वारा रासायनिक कचरा और निस्तार का पानी बहाए जाने की नीति का सख्ती से पालन अनिवार्य किया जाए। उन्हें अपने दूषित जल का परिसर के भीतर ही शत-प्रतिशत उपचार और पुनर्चक्रण करना होगा। सार्वजनिक क्षेत्र में सीवेज ट्रीटमेंट का विस्तार भी जल प्रदूषण की समस्या से निजात दिला सकता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में तत्काल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण और उन्नयन करना होगा। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी अनुपचारित सीवेज नदियों में न जाए। इसके लिए सबसे ज्यादा सरकारी विभागों की जवाबदेही बनती है। प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के संचालकों और अपने कर्तव्यों में लापरवाही बरतने वाले सरकारी अधिकारियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान भी एक तरीका हो सकता है। जल प्रदूषण में सुधार के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर बदलाव भी जरूरी है। यह संभावना भी तलाशना होगी कि केमिकल मुक्त सफाई का विकल्प आम जीवन में अपनाया जा सकता है क्या। घरों में अत्यधिक क्षारीय और रासायनिक उत्पादों के बजाय सिरका, बेकिंग सोडा जैसे पर्यावरण-अनुकूल और बायोडिग्रेडेबल क्लीनिंग एजेंट्स का उपयोग करें तो जल शुद्धिकरण बनाए रखने के लिए बेहतर रहेगा। प्लास्टिक, थर्माकोल और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री को जल निकायों में फेंकने से बचें। घरेलू कचरे का उचित पृथक्करण सुनिश्चित करें।
धार्मिक जागरूकता भी जल प्रदूषण रोकने के लिए अत्यावश्यक है। पूजा के बाद विसर्जित की जाने वाली मूर्तियों में मिट्टी एवं प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें। पूजन सामग्री को जल में विसर्जित करने के बजाय भूमि में दबाने या पुनर्चक्रण करने के लिए प्रोत्साहित करें। इस कार्य के लिए शिक्षा में सुधार और जन-जागरूकता भी जरूरी है।
स्कूलों और सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से जल संरक्षण और प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाना चाहिए।
स्थानीय जल निकायों को 'गोद लेने' और उनकी सफाई का जिम्मा लेने के लिए 'नागरिक जल संरक्षक' समूह बनाना एक अच्छा प्रयास हो सकता है। लिखने का आशय यह कि हमारा साझा दायित्व
जल प्रदूषण की समस्या पर गौर करने की तत्काल आवश्यकता है। जल एक सीमित संसाधन है, और इसकी गुणवत्ता से समझौता करना अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ है। यह स्पष्ट है कि नदियों और तालाबों को उनकी पुरानी पवित्रता लौटाने के लिए हर व्यक्ति को एक जल-योद्धा बनना होगा।
स्थानीय निकायों और शासकीय विभागों को अपनी उदासीनता त्याग कर कठोर कार्रवाई करनी होगी, और नागरिकों को अपने दैनिक व्यवहार में बदलाव लाना होगा। जब तक हर नागरिक यह नहीं मान लेता कि "यह प्रदूषण हमें ही रोकना होगा," तब तक स्थिति में सुधार नहीं होगा। स्वच्छ जल स्वस्थ जीवन की आधारशिला है। आइए, हम सब मिलकर इस जीवनदायिनी स्रोत की रक्षा का संकल्प लें।
लेखक मध्य प्रदेश बाल कल्याण आयोग के पूर्व अध्यक्ष, मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के निवृतमान प्रदेश कार्यालय मंत्री तथा वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के "मन की बात" के प्रदेश संयोजक हैं. राजनीति और सामाजिक क्षेत्र के अनेक ग्रंथों का सृजन करने का श्रेय लेखक को प्राप्त है।

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