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Environment असंतुलन : development की दौड़ में nature से बढ़ती दूरी​

Environment असंतुलन : development
 की दौड़ में nature से बढ़ती दूरी
डॉ राघवेंद्र शर्मा 
​पर्यावरण असंतुलन आज भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की सबसे बड़ी और ज्वलंत समस्या बन चुका है। जिस विकास को हम अपनी प्रगति का पर्याय मान रहे हैं, वह कहीं न कहीं हमारी जीवनरेखा, प्रकृति को ही कमजोर कर रहा है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जारी है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बुरी तरह बिगड़ गया है। इसके दुष्परिणाम जलवायु परिवर्तन, अनियमित मौसम और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए हमें न केवल तात्कालिक उपाय करने होंगे, बल्कि अपनी जीवनशैली और विकास की परिभाषा में भी मूलभूत परिवर्तन लाने होंगे।
​​मानव सभ्यता का इतिहास गवाह है कि हमने हमेशा प्रकृति के संसाधनों का उपयोग किया है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में यह उपयोग 'दोहन' की सीमा पार कर 'शोषण' बन गया है। ​सड़कें बनाने, उद्योग स्थापित करने, और आवास योजनाएं लागू करने के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई निर्बाध रूप से जारी है। जंगल के जंगल साफ़ हो रहे हैं, और कंक्रीट के जंगल उनका स्थान ले रहे हैं। विकास की यह दौड़ इस मूलभूत सत्य को अनदेखा कर रही है कि पेड़ केवल लकड़ी या जमीन घेरने वाले तत्त्व नहीं हैं, बल्कि वे पृथ्वी के फेफड़े हैं। वे हमें प्राणवायु (ऑक्सीजन) देते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, और जल चक्र को बनाए रखते हैं।
​असफल पौधारोपण और परिणाम
​समस्या केवल पेड़ों के काटने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके बाद की निष्क्रियता में भी है। अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि जितने पेड़ काटे जाते हैं, उतने नए पेड़ लगा दिए जाते हैं। लेकिन वास्तविकता इससे बहुत दूर है। जितने पेड़ काटे जाते हैं, उतने नए नहीं लगाए जाते, और जो लगाए भी जाते हैं, उनमें से अधिकतम मर जाते हैं।
​पौधारोपण अभियानों में अक्सर केवल खानापूर्ति होती है—पेड़ लगाने के बाद उनकी देखभाल, पानी देना, या उन्हें जानवरों से बचाने का कार्य सही ढंग से नहीं होता। फलतः, बहुत कम पौधारोपण सफल हो पाता है। यह स्थिति 'मृत पौधे' और 'कटे हुए पेड़' के बीच एक बड़ा असंतुलन पैदा करती है, जिसके फलस्वरूप पर्यावरण लगातार बिगड़ रहा है। वायु में कार्बन का स्तर बढ़ रहा है, गर्मी बढ़ रही है, और जैव विविधता खतरे में है। ​इस पर्यावरण असंतुलन का सीधा असर मानव जीवन और उसकी गुणवत्ता पर पड़ रहा है। ​तेजी से बढ़ते बड़े महानगरों में पेड़ों की छांव नसीब नहीं है। जहाँ कभी घने वृक्षों की शीतलता मिलती थी, वहाँ अब तपती कंक्रीट की इमारतें और डामर की सड़कें हैं, जो अतिरिक्त गर्मी के वातावरण को जन्म देती हैं। शहरों में शुद्ध हवा और ताज़गी का अभाव है, जिसके कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ और तनाव बढ़ रहे हैं। शहर के बीचों-बीच एक बड़े पेड़ का होना न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानसिक शांति और सौंदर्यबोध के लिए भी आवश्यक है।
​अनियमित मौसम और इसके प्रभाव
​पेड़ों की कमी और बढ़ते प्रदूषण के कारण मौसम अनियमित हो रहे हैं। अत्यधिक गर्मी, अप्रत्याशित बारिश, लंबे समय तक सूखा, और अचानक बाढ़—ये सब जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संकेत हैं। कहीं कम समय में इतनी ज्यादा बारिश हो रही है कि बाढ़ आ जाती है, तो कहीं लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। यह अनियमितता कृषि को प्रभावित कर रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ रही है। मौसम की यह अनिश्चितता सीधे तौर पर मानव जीवन की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचा रही है।
​समाधान की ओर: एक नया दृष्टिकोण
​यह स्पष्ट है कि अब हमें एक अलग राह पर चलने की आवश्यकता है। हमें ऐसे समाधान खोजने होंगे जो विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच समन्वय स्थापित करें।
​​सबसे पहली और महत्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि हम ऐसे विकल्प ढूंड़ें, जहाँ पेड़ काटे बगैर विकास संभव हो। निर्माण परियोजनाओं को इस तरह से नियोजित करना होगा कि वे यथा संभव कम से कम वृक्षों को प्रभावित करें। इसके लिए आधुनिक इंजीनियरिंग तकनीकों और 'ग्रीन आर्किटेक्चर' का उपयोग किया जा सकता है।
शहरों के क्षैतिज विस्तार को नियंत्रित कर ऊर्ध्वाधर विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जिससे कम भूमि का उपयोग हो और जंगल सुरक्षित रहें। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना और सौर, पवन, तथा जल ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना समय की आवश्यकता है, जिससे प्रदूषण कम हो और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण सुरक्षित रहे। समय की मांग यह भी है कि ​जब बड़े वृक्ष काटना मजबूरी हो (जैसे कि राष्ट्रीय हित की अत्यंत महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए), तो उन्हें सीधे काटने के बजाय, उन्हें दूसरी जगह परस्थापित किया जा सकता है। वृक्ष प्रत्यारोपण एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक परिपक्व वृक्ष को उसकी जड़ों के साथ खोदकर, एक नई जगह पर सफलतापूर्वक लगाया जाता है। ​यह प्रक्रिया महंगी और श्रमसाध्य हो सकती है, लेकिन एक परिपक्व वृक्ष को बनाने में दशकों लगते हैं। एक बड़ा वृक्ष जो पर्यावरण को लाभ पहुँचाता है, उसकी कीमत किसी भी कीमत पर कम नहीं आँकी जा सकती। यह तकनीक हमें विकास और संरक्षण के बीच एक पुल प्रदान करती है। ​किसी भी बड़े बदलाव के लिए केवल सरकारी नीतियां पर्याप्त नहीं होतीं। जब तक समाज वृक्षारोपण को अपने संस्कारों में शामिल नहीं कर लेता, तब तक कोई बड़ा परिवर्तन संभव नहीं है। जिस प्रकार हम त्योहार मनाते हैं या जन्मदिन पर उपहार देते हैं, उसी प्रकार हर शुभ अवसर—जन्मदिन, शादी की सालगिरह, या नए घर में प्रवेश—पर एक पौधा लगाना और उसे पालना हमारी परंपरा का हिस्सा बनना चाहिए। पौधारोपण केवल एक दिन का काम नहीं है, बल्कि यह एक लंबी अवधि की जिम्मेदारी है। लगाए गए पौधों को सफल वृक्ष बनाने की सामूहिक जिम्मेदारी लेनी होगी। स्थानीय समुदाय, स्कूल और नागरिक संगठन इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
यहां तक कि  बच्चों को छोटी उम्र से ही पेड़ों के महत्व के बारे में सिखाना जरूरी हो गया है, उन्हें प्राकृतिक परिवेश से जोड़ना और उन्हें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना भविष्य की पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण निवेश है। लिखने का आशय यह है कि ​पर्यावरण असंतुलन की चुनौती विकराल है, लेकिन असंभव नहीं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाना, पौधारोपण को सफल बनाना, और विकास के लिए पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को अपनाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। हमें विकास को विनाश का नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का प्रतीक बनाना होगा। वृक्षों को काटने से पहले सौ बार सोचना और अपरिहार्य स्थिति में उनका प्रत्यारोपण करना, यह दर्शाता है कि हम प्रकृति के प्रति कितने गंभीर हैं। जब तक हम सब मिलकर, व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर, वृक्षारोपण को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग नहीं बनाएंगे, तब तक हम इस वैश्विक संकट से उबर नहीं पाएंगे। पर्यावरण को बचाना केवल पृथ्वी को बचाना नहीं है, यह स्वयं को बचाना है।
लेखक मध्य प्रदेश बाल कल्याण आयोग के पूर्व अध्यक्ष, मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के निवृतमान प्रदेश कार्यालय मंत्री तथा वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के "मन की बात" के प्रदेश संयोजक हैं. राजनीति और सामाजिक क्षेत्र के अनेक ग्रंथों का सृजन करने का श्रेय लेखक को प्राप्त है।
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