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बेहद विनम्र, किंतु राष्ट्रसेवा पथ के कठोर पथिक डॉ मोहन भागवत

बेहद विनम्र, किंतु राष्ट्रसेवा पथ के कठोर पथिक डॉ मोहन भागवत 

डॉ राघवेंद्र शर्मा
है ना आश्चर्य की बात! विश्व के सबसे बड़े हिंदू संगठन के सुप्रीमो का जन्मदिन है और कहीं से भी एक पटाखा फूटने की खबर पढ़ने अथवा देखने को नहीं मिली। यही वैशिष्ट्य है और यही असीमित बल है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का। जी हां आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक डॉक्टर मोहन भागवत का जन्मदिन है। इसे बेहद सादगी पूर्ण तरीके से मनाया जा रहा है। कोई दिखावा नहीं, कोई फोटो सेशन नहीं और ना ही हो हल्ला। स्वयंसेवक प्रतिदिन की भांति आज भी मानव सेवा, राष्ट्र सेवा में संलग्न हैं। परमपिता परमात्मा से प्रार्थना कर रहे हैं कि यदि हमसे जाने अनजाने, अंतर्मन से अथवा भूलवश कोई अच्छा कार्य हो गया हो, तो हमारे संघ प्रमुख को स्वस्थ रहने और लंबी आयु तक राष्ट्र सेवा करने का आशीर्वाद अवश्य देना। स्वयं सेवकों के इस संयमित व्यवहार और उनकी अनुशासित कार्य शैली को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जहां ऐसा शाश्वत सेवा भाव हो वहां भला सकारात्मक ऊर्जा का संचार आखिर क्यों ना हो। यदि हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गठन की बात करें तो इसका प्रादुर्भाव ही 1925 की विजयदशमी को इसीलिए हुआ था कि हमें बगैर किसी भेदभाव के, तुष्टिकरण का रास्ता अपनाए बगैर, भारतीय संप्रभुता, उसकी अक्षुण्णता के लिए सदैव तत्पर रहना होगा। हमें हिंदुओं के अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी रहना है।  इस सावधानी के साथ कि हमारे किसी भी कृतित्व से अन्य संप्रदायों की नैसर्गिक भावनाएं आहत न हों। उनके संवैधानिक हितों को किसी भी प्रकार का प्रतिकूल आघात न पहुंचे। कहते हैं जब नीयत साफ हो और लक्ष्य पवित्र तो कर्मयोगियों के पक्ष को ईश्वर की कृपा मिलनी ही होती है। इसके लिए कर्ता को भागीरथी संकल्प के साथ अथक उद्यम करना होता है। पूरी एक सदी होने को है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र सेवा और मानव सेवा के पद पर लगातार सक्रिय बना हुआ है। आदि सर संघचालक स्वर्गीय श्री केशव बलिराम हेडगेवार जी के बाद अनेक प्रमुखों ने समय-समय पर संघ की कमान संभाली और एकमात्र आदर्श भगवा ध्वज के मार्गदर्शन में निरंतर आगे बढ़ते हुए संघ को विश्व का सर्वाधिक व्यापक संगठन बना दिया। श्री माधव सदाशिव गोलवलकर जी, श्री मधुकर दत्तात्रेय देवरस, प्रोफेसर राजेंद्र सिंह, श्री कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन के बाद अब डॉक्टर मोहन मधुकर राव भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कमान संभाल रहे हैं। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सकल हिंदू समाज संघ के वर्तमान सर संघ चालक डॉक्टर मोहन भागवत का जन्मदिन सेवा भाव के साथ मनाया ज रहा है। यह सम्मान का भाव इसलिए भी परिलक्षित है, क्योंकि डॉ मोहन भागवत ने भारत के वर्तमान स्वरूप और उसकी संप्रभुता, अक्षुण्णता  को ध्यान में रखते हुए अनेक ऐतिहासिक मार्गदर्शन मानव मात्र को उपलब्ध कराए हैं। यह भाव भी उनके अंतर्मन से प्रस्फुटित हुआ है कि भारत आदिकाल से ही समूचे विश्व के मानव समाज को अपने कुटुंबीजनों के रूप में देखता आया है। निसंदेह उनके विचारों ने देश के भीतर तो समरसता के भाव को और अधिक पुष्ट किया ही, वैश्विक स्तर पर भी भारत के प्रति मित्रता के भाव को मजबूती प्रदान की है। यही वजह है कि जब देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी वसुधैव कुटुंबकम की बात करते हैं तो यह कहना नहीं भूलते कि उन्हें यह प्रेरणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से ही प्राप्त हुई है। भारत के हिंदू मुस्लिम का डीएनए एक है, इस व्यापक सत्य को सार्वजनिक तौर पर अनावरित करने का साहस डॉक्टर मोहन भागवत और संघ की पावन विचारधारा को और अधिक प्रामाणिकता प्रदान करता है। आज जब भारत के आसपास और वैश्विक परिदृश्य में हर कहीं अशांति का वातावरण है, युद्ध के बादल छाए हुए हैं, तब मोहन भागवत ही पूरे आत्मविश्वास के साथ इस सत्य को स्थापित करते दिखाई देते हैं कि यह भारत का युग है। उसकी जिम्मेदारियां ज्यादा हैं । वैश्विक स्तर पर उसे विश्व गुरु ना सही, विश्व मित्र के रूप में आगे बढ़कर सेवा कार्य करने की आवश्यकता है। ऐसे बेहद विनम्र, किंतु राष्ट्र हित के कट्टर हिमायती डॉक्टर मोहन भागवत जी को जन्म दिवस की अनंत शुभकामनाएं। वे स्वस्थ हों और लंबे कालखंड तक भारत को विश्व सेवा का पाठ पढ़ाते रहें, ईश्वर से ऐसी प्रार्थना है।
वंदे मातरम
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