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Siddharth को राजकुमार से भगवान Buddh बनाता है yoga : Dr Raghvendra Sharma

डॉ राघवेंद्र शर्मा 
योग एक ऐसी अवस्था का नाम है जो मनुष्य के जीवन और उसकी देह को ही नहीं बल्कि आत्मा को भी परम तत्व की प्राप्ति कर देती है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय यानि चोरी न करना, ब्रह्मचर्य यानि संयम, अपरिग्रह यानि संग्रह न करना, शौच यानि आंतरिक और बाहरी स्वच्छता, संतोष, तपस्या, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान यानि ईश्वरीय शक्ति के प्रति समर्पण, योग के ऐसे दस नियम हैं, जिनका पालन करके मनुष्य  ईश्वरत्व को भी प्राप्त हो जाता है।
किंतु अखिल विश्व इस पवित्र विद्या से लंबे कालखंड तक वंचित बना रहा। उसी का नतीजा है कि आज मनुष्य की तृष्णा शांत होने का नाम नहीं लेती। यह तृष्णा यश कीर्ति की है, धन प्राप्ति की है, अधिकार वाद की है, जो कि तृप्त होने को तैयार दिखाई नहीं देती। यही वजह है कि जहां देखो वहीं लड़ाई झगड़ा, वाद विवाद, घोषित अघोषित युद्ध घटित हो रहे हैं, जो रुकने का नाम ही नहीं लेते। संक्षिप्त में कहें तो अधिक, और अधिक पाने की चाह ने व्यक्ति को अशांत तथा आक्रांता बना दिया है। मनुष्य का यही स्वभाव सारे लड़ाई झगड़ों की जड़ है। इसी के चलते विश्व के किसी न किसी छोटे बड़े भूभाग पर सदैव ही युद्ध अथवा उग्रवाद अस्तित्व में बना रहता है। वर्तमान में वैश्विक परिदृश्य पर विभिन्न देशों के बीच जो युद्ध देखने को मिल रहे हैं, वह शांति की चाह रखने वाले लोगों के बीच निराशा का भाव पैदा करते हैं। क्योंकि स्वयं को श्रेष्ठ और मैं ही सही बाकी सब गलत का भाव रखने वाले वैश्विक नेतृत्वकर्ता कभी शांत चित्त हो पाएंगे, ऐसी कल्पना तक करना बेकार प्रतीत होता है। ऐसे में योग ही एकमात्र ऐसा रास्ता है जो हमें समस्त आशाओं का एकमात्र केंद्र बिंदु दिखाई देता है। इसे समझने के लिए हमें राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बन गए गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन को समझना होगा। कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ का रुझान बचपन से सत्य को जानने की ओर केंद्रित था। उनके माता-पिता को इस बात का डर था कि बेटा इस शांत चित्त भाव के चलते कहीं बाबा जोगी ना बन जाए। इसी चिंता के चलते उन्होंने राजकुमार सिद्धार्थ को ऐश्वर्य वैभव पूर्ण जीवन की मर्यादाओं से भी आगे बढ़कर विलासिता पूर्ण पालन पोषण में घेर कर रख दिया। लेकिन यह योग का ही बल था कि उनका चित्त इन भौतिक उपलब्धताओं में आसक्त नहीं हुआ। उन्हें जब कभी भी अपने महल से बाहर जाने का अवसर मिलता तब वे सामाजिक परिवेश को देखकर यही सोचते कि सब कुछ होने के बावजूद मनुष्य परेशान क्यों है। क्यों व्यक्ति बचपन में केवल भोज्य और पेय पदार्थों के लिए ही रोता बिलखता रहता है। क्यों किशोरावस्था में भोग और विलास की ओर उन्मुख हो उठता है। वह जानता है कि एक दिन मृत्यु को प्राप्त होकर खाली हाथ अनंत यात्रा की ओर अग्रसर हो जाना है। फिर भी अधिक और अधिक प्राप्त करने की चाह रखते हुए उचित अनुचित कृत्य करने लगता है। इसी आपाधापी में न जाने कब ऊर्जा युक्त जीवन हाथ से फिसलता चला जाता है और फिर शारीरिक अवस्था डोलने लगती है। शरीर विभिन्न रोगों का घर बन जाता है। अंततः मन और मस्तिष्क को अत्यंत प्रिय लगने वाली देह एक दिन मिट्टी में मिल जाती है। यह सब देखकर हम समझ ही नहीं पाते कि मनुष्य क्यों पैदा हुआ और किस लिए जीवन की आपाधापी में लगा रहा और फिर एक दिन जीवन को निरर्थक प्रमाणित करता हुआ मृत्यु को प्राप्त हो गया। राजकुमार सिद्धार्थ को इन सवालों ने जब-जब उद्वेलित किया तब तब उन्हें ध्यानस्थ होने पर शांति की अनुभूति हुई। जैसा कि पूर्व में लिखा जा चुका है राजकुमार सिद्धार्थ के माता-पिता को यह चिंता खाए जाती थी कि बेटा योग साधना में रुचि रखने के चलते कहीं बाबा जोगी ना बन जाए। इसलिए उनके ध्यान मग्न होने में व्यवधान पैदा होता रहा। क्योंकि वह जीवन और मृत्यु का सत्य जानना चाहते थे, जो महलों में रहते संभव नहीं था। सो अवसर पाकर अर्ध रात्रि में पत्नी यशोधरा, पुत्र राहुल को सोता छोड़कर वन की ओर प्रस्थान कर गए। अब उन्हें तलाश थी एक ऐसे स्थान की, जहां किसी भी प्रकार के व्यवधान की आशंका न हो और ध्यान मग्न होकर बोधिसत्व को प्राप्त किया जा सके। आखिर गया जी में जाकर उनकी यह साध पूरी हुई। वहां एक वृक्ष के नीचे उन्होंने योग साधना की और ऐसे ध्यान मग्न हुए कि लंबे समय के लिए समाधिस्थ होकर रह गए।  यह योग की ही देन थी कि जब उनकी समाधि पूर्ण हुई तो सामान्य अवस्था को प्राप्त होने पर उन्होंने स्वयं को समस्त चिंताओं और आसक्तियों से मुक्त महसूस किया। जीवन और मृत्यु का सार समझ में आ गया। भौतिक रूप से उपलब्धियां और उपलब्धताओं को प्राप्त करने की आपाधापी एकदम निरर्थक साबित हो गई। तब उन्हें लगा कि इस सात्विक विचार से पूरे विश्व का साक्षात्कार होना चाहिए। ताकि केवल मनुष्य ही नहीं वरन् जीव मात्र को सत्य, प्रेम और अहिंसा का सही मार्ग दिखाया एवं समझाया जा सके।
बस यही से बुद्ध धर्म की स्थापना हुई। इस पवित्र विचार ने ऐसे ऐसे रक्त पिपासुओं को अहिंसा का पुजारी बना दिया, जो मानो युद्धों का आगाज और अंजाम तक पहुंचाने के लिए ही पैदा हुए थे और संभवत इसीलिए जिंदा भी थे। लेकिन खेद जनक बात यह है कि इस विचार को भौतिक विकास को प्राथमिकता देने वाली शिक्षा नीति ने दुनिया भर से उपेक्षित कर दिया। फल स्वरुप वो देश भी विस्तारवाद की अपवित्र नीति के पोषक और अनुसरण कर्ता बन गए जो स्वयं को भगवान बुद्ध को मानने वाला कहते नहीं थकते। नतीजतन हर कहीं अशांति और एक दूसरे को नष्ट कर देने का भाव पैर पसारता चला गया। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में आने से पहले और राजनीति में रहते हुए योग साधना की ताकत को काफी गंभीरता से महसूस किया। उन्होंने लंबे अध्ययन के बाद प्राप्त अपने अनुभवों को साझा करते हुए कई बार अनेक विद्वानों से यह उत्सुकता प्रकट की, कि जो योग साधना विलासिता पूर्ण जीवन में पहले बढ़े राजकुमार सिद्धार्थ को भगवान गौतम बुद्ध बना सकता है, क्यों न उसे विश्व भर में प्रचारित प्रसारित करके जीव मात्र का भला किया जाए! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक रहते और अन्य दायित्वों का निर्वहन करते उन्होंने इस विचार को जीवंत बनाए रखा। संघ की शाखाओं के माध्यम से उन्हें इस विचार को और अधिक पोषित एवं सुदृढ़ करने का निरंतर अवसर मिलता रहा। यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाएं भगवान गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन के माध्यम से योग को और अधिक मजबूती प्रदान करने में सर्वाधिक उत्तम माध्यम साबित हुईं। जब उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री और देश का प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ तो फिर उन्होंने इस विचार को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने में पूरी ताकत लगा दी। वे जब जब विदेशी प्रवास पर गए उन्होंने तब तब भारत को भगवान के मुखारविंद से प्राप्त गीता प्राप्त करने वाला और यहीं की पावन माटी से अवतरित योग एवं योग से प्रकट भगवान गौतम बुद्ध की धरती प्रतिपादित किया। जब कभी भी युद्ध की विकराल परिस्थितियों से विश्व भयाक्रांत हुआ, तब तब उन्होंने इस युग को युद्ध की बजाय बुद्ध के मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित किया। आखिरकार यह बात विश्व भर के नेताओं की समझ में आई और फिर इस बात पर सहमति बनी कि आगे से प्रत्येक वर्ष 21 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
अब भारत ही नहीं पूरा विश्व 21 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाता है। इस दिन दुनिया भर के योग साधक नए-नए कीर्तिमान रचते हैं और इस साधना को जन-जन तक पहुंचाने के उद्यम में जुट चुके हैं। भारत में भी बाबा रामदेव जैसे योग साधकों ने इस विद्या को दुनिया भर में स्थापित करने के लिए जो अथक प्रयास किए हैं, उनकी जितनी सराहना की जाए कम है।
योग के प्रचार प्रसार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को भी कम नहीं आंकना चाहिए। यही वह संस्था है जो लगभग 100 वर्षों से अपनी शाखाओं में योग को व्यवहार में बनाए हुए हैं। कौन नहीं जानता कि संघ की शाखाओं में बाल्य काल से ही स्वयं सेवकों को तन और मन की शुद्धि को योग के माध्यम से ही हृष्ट-पुष्ट  बनाए रखने की शिक्षा दीक्षा दी जाती है। वह योग ही है जिसके बल बूते पर संघ के अधिकांश पदाधिकारी जीवन भर स्वस्थ रहते हुए मृत्यु पर्यंत राष्ट्र सेवा में संलग्न बने रहते हैं। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री और अखिल विश्व की आशाओं के केंद्र बिंदु बन चुके श्री नरेंद्र मोदी उन्हीं विभूतियां में से एक हैं। विश्व भर में योग की सत्यता को प्रतिपादित करने के लिए उन्हें साधुवाद और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर समस्त योग साधकों को बधाइयां।
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