सचिन समर्थक विधायकों का रेट 35-35 करोड़ बताया था
कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान सरकार बचाने कितने करोड़ बांटे? यह सवाल अब देश के प्रबुद्ध वर्ग द्वारा उनसे पूछा जा रहा है। उक्त सवाल पूछे जाने का कारण यह बताया जा रहा है, क्यों कि उन्होंने ही सचिन समर्थक विधायकों का रेट 35-35 करोड़ बताया था। जी हां, अशोक गहलोत का सचिन पायलट से लगातार विवाद चल रहा था। तब पायलट ने हरियाणा के एक होटल में अपने लगभग बीस विधायकों के साथ डेरा जमा लिया था। उसी दौरान अशोक गहलोत और उनके समर्थक कांग्रेसी नेताओं ने अनेकों बार मीडिया के सामने हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप लगाए थे। बार बार ये कहा गया था कि भाजपा एक एक विधायक का 35-35 करोड़ रूपया मोल लगा रही है। यह भी कहा गया था कि सचिन और उनके समर्थक विधायक पैसों की चकाचौंध के सामने अपना ईमान धरम खो बैठे हैं।
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ज्ञात हो कि गांधी परिवार के हस्तक्षेप के बाद अब राजस्थान कांग्रेस का घमासान फिलहाल थम गया है। नतीजतन अब वहां की अशोक गहलोत सरकार पर मंडरा रहे अनिश्चितता के बादल छंट गए प्रतीत हो रहे हैं। खुद सचिन पायलेट ने भी गांधी परिवार से मुलाकात के बाद ये कह दिया है कि उनके कुछ नीतिगत मतभेद थे, जिन्हें सुलझाए जाने का आश्वासन दिया गया है। आशय साफ है, राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार अब संकट से बाहर निकल आई है।
भविष्य में आगे की रणनीति के तहत राजस्थान के सीएम बदले जाते हैं या फिर कमान गहालोत के हाथों में ही बनी रहने वाली है, ये आने वाला वक्त ही बेहतर बता पाएगा। लेकिन फिलहाल एक सवाल अशोक गहलोत से बनता है। वह ये कि जिन्हें भ्रष्ट, अवसरवादी, बिकाऊ और न जाने क्या क्या कहा गया, क्या गहलोत उनके साथ सरकार चलाने को तैयार हैं? क्या उन्हें कथित भ्रष्ट, अवसरवादी, बिकाऊ विधायकों के साथ काम करते वक्त शर्म का अहसास तक नहीं हो रहा है?
यदि हां तो वे अभी तक राजस्थान के सीएम क्यों बने हुए हैं? यदि जवाब न में है तो गहलोत को ये स्पष्ट करना चाहिए कि विवाद के वक्त वे और उनके समर्थक कांग्रेसी नेता सफेद झूठ बोल रहे थे। मान भी लिया जाए कि वे सच बोल रहे थे तो फिर उन्हें उक्त आरोपों पर से अब पर्दा उठा देना चाहिए। यदि वे सही हैं तो उनके लिए कथित हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप सिद्ध करना बेहद आसान हो चला है। वह इसलिए, क्यों कि वर्तमान में सचिन पायलट भी कांग्रेस में लौट आए हैं।
उनके साथ उनके समर्थक बागी विधायकों की भी घर वापिसी हो चुकी है। अत: वे बेहतर ढंग से बता पाएंगे कि उनकी किस भाजपा नेता से डील चल रही थी। ये भी बता पाएंगे कि उन्हें भाजपा से हॉर्स ट्रेडिंग के एवज में कितने करोड़ की राशि मिल चुकी थी और कितनी मिलने वाली थी। अब ये भी सामने आना चाहिए कि गहलोत के हिसाब से बिकाऊ विधायकों को पुन: अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस ने उन्हें कितने करोड़ का भुगतान करना पड़ा है। क्यों कि बिकाऊ माल तो फिर बिकाऊ ही होताा है।
यदि विधायकों को भाजपा से करोड़ों मिले थे तो फिर उस राशि का क्या हुआ? क्या वो वापिस की जा चुकी है? यदि नहीं तो क्या कथित बिकाऊ विधायक उक्त राशि का डकार गए हैं। यदि ऐसा है और गहलोत के आरोप भी सही थे, तो फिर विधायकों की तो चांदी ही चांदी है। मान लो, गहलोत के मुताबिक उन्हें भाजपा 35-35 करोड़ दे रही थी अथवा दे चुकी थी, तो फिर पुन: पाला बदलने के लिए उन्होंने कांग्रेस से 40-40 करोड़ तो लिए ही होंगे। ये इसलिए लाजिमी है, क्यों कि बिकाऊ माल तो बिकाऊ ही होता है।
जब वो भाजपा की ओर करोड़ों के लालच में आकर्षित हुआ था, तो कांग्रेस में वापिसी मुफ्त मे क्यों करेगा? लिखने का आशय ये कि अब वे सब विधायक और सचिन पायलट फिर से गहलोत के साथ हैं। अब उस जांच को पूर्णता प्राप्त होनी ही चाहिए, जो राजस्थान सरकार ने हॉर्स ट्रेडिंग के आरोपों के साथ भाजपा नेताओं के खिलाफ शुरू कराई थी। एक बात और, जांच को वक्त दिया जाना भी उचित प्रतीत नहीं होता।
क्यों कि गहलोत सरकार के मुताबिक जो बिके, अथवा बिकने के लिए उकसाए गए, वे सब कांग्रेस में वापिस लौट आए हैं। अत: सीएम अशोक गहलोत को चाहिए कि वे जांच एजेंसी के सामने उन सभी के शीघ्र अति शीघ्र बयान कराएं और अपने आरोपों की पुष्टि करें। वर्ना यही माना जाएगा कि वे अपनी नाकामयाबियों को छुपाने के लिए सचिन पायलट, उनके समर्थक विधायकोंं व भाजपा को बदनाम करने की गरज से गलत बयानी कर रहे थे।