आईएमए का दावा कोविड-19 का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू
सरकारें कह रही हैं डरने की कोई बात नहीं
सच्चाई यह है कि नागरिकों को डरने की जरूरत है
Hindi Sampadkiya / देश भर में कोरोना अब तक के सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। यह संक्रमण और उससे होने वाली मौतों के बढ़ते आंकाड़ों से स्वत: स्पष्ट है। इधर इंडियन मेडिकल एसोसियेशन यानि कि आईएमए दावा है कि कोविड-19 का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू देश भर में शुरू हो चुका है। लेकिन इससे उलट केंद्र और विभिन्न राज्यों की सरकारें कह रही हैं कि डरने की कोई बात नहीं। नतीजतन नागरिक दिग्भ्रमित है और अपनी उच्छश्रंखलता के चलते खुद ही मौत को गले लगाता चला जा रहा है। यह सब देखने के बाद आ रहे निष्कर्ष के मुताबिक सच्चाई यह है कि असल में नागरिकों को डरने की जरूरत है।
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प्रधान संपादक मोहन लाल मोदी की कलम से
किसी ने सोचा तक नहीं था कि कोरोना को लेकर देश को इतनी भयानक स्थितियों से गुजरना पड़ेगा। हम खुद सजग होने की बजाय सरकारों के मुखारविंद निहारते रहे और कोरोना की महामारी में जा फंसे। मसलन पहले लॉक डाउन लगा फिर अनलॉक लागू कर दिया गया। हमें समझाया गया कि हालात सुलझ रहे हैं, इसीलिए अनलॉक की शुरूआत हुई है। जबकि ये सच नहीं था। सच ये है कि सरकारें अर्थ व्यवस्था की हिलती चूलों को देखकर खुद हिल गई थीं। उनकी समझ में आ गया था कि ज्यादा दिन कामधंधों पर प्रतिबंध बना रहा तो भुखमरी फैलते देर नहीं लगेगी।
जनता भी मौत से ज्यादा भूख को दुश्मन नंबर एक मान कर चल रही थी। सो जनसेवकों ने वो किया जो एक लोभी चिकित्सक सुगर के मरीज के साथ करता है। बता दें कि डायबेटिक मरीज को सुगर जहर के समान होती है। उस पर तुर्रा ये कि उसे मीठा बहुत भाता है। यदि चिकित्सक उसकी मिठाई के प्रति कड़ा रुख अपनाता है तो मरीज के हाथ से जाने का डर बना रहता है। ऐसे में चालाक डॉक्टर मरीज पर अहसान प्रकट करता है। वह छूट दे देता है कि ज्यादा इच्छा हुआ करे तो थोड़ा बहुत मीठा खा लिया करो, ज्यादा परेशानी होगी तो मै हूं न। बस यहीं से मामला बिगड़ता है।
सरकार की ओर से आम जनता को इच्छा मृत्यु का वरदान
एक बार मीठे की जो लत लगती है वो अंतत: जानलेवा साबित होती है। कोरोना काल में सरकार डॉक्टर है, कोरोना सुगर की बीमारी है और जनता मरीज है। अनलॉक मीठा खाने की अनियंत्रित छूट है। पहले कोरोना रूपी सुगर फैला तो सरकार सख्त हुई। फिर उसे लगा कि सुगर यानि कि कोरोना पर सख्ती आम आदमी को रास नहीं आ रही है, वह बागी हो सकता है। सो उसने अनलॉक जारी कर दिया। यानि कि सुगर के मरीज को मीठा खाने की छूट प्रदान कर दी। इसे कहते हैं सरकार की ओर से आम जनता को इच्छा मृत्यु का वरदान। अब जनता आजाद घूम रही है और सरकार ऑल इज वेल का दावा कर रही है।
इसी धींगा मस्ती में अब कोविड-19 कम्युनिटी स्प्रेड की गति में आ गया है। इस दावे को संक्रमण और उससे होने वाली मौतों के नितदिन बढ़ रहे आंकड़े प्रामाणिकता प्रदान कर रहे हैं। ऐसे में अब आम आदमी को ही समझना होगा कि ये अनलॉक नाम का मीठा उसके लिए जानलेवा साबित हो रहा है। सरकार भी इस बात को भली भांति जानती है। लेकिन वो सख्ती नहीं करना चाहती। क्यों कि उसे लगता है कि ऐसा करने से जनता उसके खिलाफ चली जाएगी। मौके की ताक में बैठा अकर्मण्य विपक्ष भी सवाल उठाएगा कि जब हालात ठीक नहीं थे तो अनलॉक किया ही क्यों?
जो भीड़ लगा रहे हैं, वे समाज के दुश्मन नंबर वन
एसे में राजनेताओं के लिए रास्ता यही शेष रह जाता है कि सब कुछ भगवान भरोसे चलने दिया जाए। वाकई में सब कुछ भगवान भरोसे ही तो चल रहा है। सरकार दिग्भ्रमित हैं और विपक्ष अकर्मण्य होकर प्रासांगिकता खोता जा रहा है। तब एक ही रास्ता शेष रह जाता है कि हमें ही मीठे की भयावहता समझनी होगी। यही नहीं, बल्कि इस भयावहता से हमें डरना भी होगा। क्यों कि तीक्ष्ण बचाव उसी चीज से होता है, जिससे हमें जान माल का भय हो। इसके लिए हमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना ही होगा। फेस मास्क को ड्रेसकोड का अपरिहार्य हिस्सा मानना ही पड़ेगा। भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से हमें ही बचना होगा। यही नहीं, ये धारणा सार्वजनिक करनी होगी कि जो भीड़ लगा रहे हैं, वे समाज के दुश्मन नंबर वन हैं।
उनके खिलाफ समाज द्रोही, राज्य द्रोही और यहां तक कि राष्ट्र द्रोही के समान व्यवहार करने की आवश्यकता है। यह भी जरूरी है कि हम घरों से तभी निकलें जब ये तय हो जाए कि नहीं निकले तो अनर्थ हो जाएगा। परिवार के अन्य सदस्यों, खासकर फालतू घूम रहे युवाओं को नियंत्रित करें। यदि हम दुकान ऑफिस या बाजार में हैं तो ये निश्चित कर लें कि हमारे आसपास कोई ज्यादा नजदीक तो नहीं है। यदि ऐसा दिखाई दे तो जरूरत है कि ऐसे शख्श को तत्काल अपने आप से दूर किया जाए। ये आपके अधिकार में शामिल है और यही हमारा दायित्व भी है। सरकार से भी अपेक्षा है कि वो लॉक डाउन भले न लगाए। लेकिन जो अनावश्यक बाजारों में भीड़ बढ़ा रहे हैं, मास्क नहीं लगा रहे हैं, सेनेटाइजेशन की अनदेखी कर रहे हैं, उनके खिलाफ तो सख्त बने।
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